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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ शब्द श्रवण ७९७ ४ उत्तर-हे गौतम ! केवली मनुष्य तोआरगत शब्दों को और पारगत शब्दों को तथा दूर, निकट, अत्यन्त दूर और अत्यन्त निकट, इत्यादि सभी प्रकार के शब्दों को जानते और देखते हैं। ५ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली भगवान् आरगत शब्दों को पारगत शब्दों को यावत् सब प्रकार के शब्दों को जानते हैं और देखते हैं। इसका क्या कारण है ? ५ उत्तर-हे गौतम ! केवली भगवान्, पूर्व दिशा की मित वस्तु को भी जानते देखते है और अमित वस्तु को भी जानते देखते हैं । इसी तरह दक्षिण दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्ध्व दिशा और अधो दिशा की मित वस्तु को भी और अमित वस्तु को भी जानते हैं और देखते हैं। केवली भगवान् सब जानते हैं और सब देखते हैं। केवली भगवान्, सर्वतः (सभी ओर) जानते और देखते हैं । केवली भगवान् सभी काल में सभी भावों (पदार्थों) को जानते और देखते हैं। केवली भगवान् के अनन्त ज्ञान और अनन्तदर्शन होता है। केवली भगवान् का ज्ञान और दर्शन निरावरण होता है अर्थात् उनके ज्ञान और दर्शन पर किसी प्रकार का आवरण नहीं होता। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि-केवली भगवान् आरगत और पारगत शब्दों को यावत् समी प्रकार के शब्दो को जानते और देखते हैं। विवेचन-इसके पहले तीसरे उद्देशक में अन्य मतावलम्बी छ अस्थ मनुष्य का वर्णन किया गया है । अब इस चौथे उद्देशक में छद्मस्थ और केवली मनुष्य सम्बन्धी वक्तव्यता कही जाती है । यह तीसरे उद्देशक और चौथे उद्देशक का परस्पर सम्बन्ध है। मुख के साथ शंख का संयोग होने से, हाथ के साथ ढोल का संयोग होने से, लकड़ी के टुकड़े के साथ झालर का संयोग होने से, तथा इसी तरह के अन्यान्य पदार्थों के साथ अनेक प्रकार के बाज़ों का संयोग होने से अथवा बजाने के साधन रूप अनेक प्रकार के पदार्थों द्वारा पीटने से, एवं उनका संयोग होने से, अनेक प्रकार के बाजों से, अनेक प्रकार के शब्द उत्पन्न होते हैं । उन शब्दों एवं शब्द-द्रव्यों को स्पृष्ट एवं इन्द्रिय विषय होने पर, छद्मस्थ मनुष्य सुनता है । केवली मनुष्य आरगत शब्दों और पारगत शब्दों को अत्यन्त दूर रहे हुए, अत्यन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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