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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ शब्द श्रवण ४ प्रश्न-जहा णं भंते ! छउमत्थे मणूसे आरगयाइं सदाई सुणेइ, णो पारगयाइं सदाइं सुणेइ; तहा णं भंते ! केवली मणुस्से किं आरगयाइं सदाइं सुणेइ, णो पारगयाइं सद्दाइं सुणेइ ? ४ उत्तर-गोयमा ! केवली णं आरगयं वा, पारगयं वा, सव्वदूरमूलमणंतियं सदं जाणइ पासइ । ५ प्रश्न-से केणटेणं तं चेव केवली णं आरगयं वा, पारगयं वा, जाव-पासइ ? .. " ५ उत्तर-गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ; एवं दाहिणेणं, पचत्थिमेणं, उत्तरेणं, उड्ढे, अहे मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ; सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ केवली; सव्वओ जाणइ, पासइ; सव्वकालं सब्वभावे जाणइ केवली, सव्वभावे पासइ केवली; अणंते णाणे केवलिस्स, अणते दसणे केवलिस्स; णिबुडे णाणे केवलिस्स, णिबुडे-दंसणे केवलिस्स से तेणटेणं जाव-पासइ। कठिन शब्दार्थ-आउडिज्जमाणाई-बजाये जाते हुए, पुट्ठाई-स्पर्श होने पर, आरगयाइं-इन्द्रियों के समीप रहे हुए-इन्द्रिय गोचर, पारगयाइं-इन्द्रियों से दूर रहे हुए-इन्द्रिय अगोचर, पासइ-देखते हैं, मियं-मित, णिन्वुडे गाणे-जिनके ज्ञान की ओट हट गई है। भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, बजाये जाते हुए वादिन्त्र के शब्दों को सुनता है ? यथा-शंख के शब्द, रणशृंग (एक प्रकार का बाजा) के शब्द, शंखिका (छोटे शंख) के शब्द, खरमुही (काहलो नामक बाजा) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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