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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ३ आयुष्य सहित गति ७९१ एवं जाव-वेमाणियाणं दंडओ। ___४ प्रश्न-से गूणं भंते ! जे जं भविए जोणि उववजित्तए से .. तमाउयं पकरेइ, तं जहा-णेरइयाउयं वा, जाव-देवाउयं वा ? ___४ उत्तर-हंता, गोयमा ! जे जे भविए जोणिं उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा-णेरइयाउयं वा, तिरि-मणु-देवाउयं वा । रइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ । तं जहा-रयणप्पभापुढविणेरइयाउयं वा, जाव-अहेसत्तमापुढविणेरइयाउयं वा, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ, तं जहा-एगिंदियतिरिक्खजोणियाउयं वा भेओ सव्वो भाणियव्यो । मणुस्साउयं दुविहं, देवाउयं चउन्विहं । सेवं भंते !, सेवं भंते ! त्ति । ॥ पंचमसए तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ . कठिन शब्दार्थ-भविए-होने योग्य, साउए-आयुष्य सहित, संकमइ-जाता हैं, जिराउए-बिना आयुष्य के, कडे-किया, समाइण्णे-आचरण किया, पुरिमे-पूर्व के। भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! जो जीव नरक में उत्पन्न होने वाला हैं, क्या वह जीव यहीं से आयुष्य सहित होकर नरक में जाता है अथवा आयुष्य रहित होकर नरक में जाता है ? २ उत्तर-हे गौतम ! जो जीव नरक में उत्पन्न होने वाला है, वह यहीं से आयुष्य सहित होकर नरक में जाता है, परन्तु आयुष्य रहित होकर नरक में नहीं जाता। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! उस जीव ने वह आयुष्य कहां बांधा ? और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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