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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. १ वर्षा का प्रथम समय इस प्रकार जब दिन कम होना प्रारम्भ होता है. तब रात्रि बारह मुहूर्त और मुहूर्त व २, भाग जितनी होती है अर्थात् इस तरह रात्रि भी बढ़ने लगती है । तात्पर्य यह है कि दिवस का जितना भाग घटना है, उतना ही भाग रात्रि का बढ़ जाता है, क्योंकि होरात्र तीस मुहूर्त का होता है। इस तरह पूर्वोक्त क्रम द्वारा सम्भव पूर्वक दिन का रिमाण घटाते जाना चाहिये । जव सूर्य दूसरे मण्डल से ३१ वें मण्डल के अर्द्ध भाग में जाता है, तव दिवस सत्तरह मुहुर्त का होता है और रात्रि तेरह मुहूर्त की होती है। यहां से चलता हुआ सूर्य जब ३२ वें मण्डल के आधे भाग में जाता है, तब एक मुहूर्त के : भाग कम सतरह मुहूर्त का दिन का होता है और रात्रि मुहूर्त के भाग अधिक तेरह. मुहूतं की होती है । ३२ वें मण्डल से चलता हुआ सूर्य जब ६१ वें मण्डल में जाता है, तब मोलह मुहूर्त का दिन होता है और चौदह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब सूर्य दूसरे से ५२ वें मण्डल के अर्द्ध भाग में जाता है तब दिन पन्द्रह मुहूर्त का होता है और रात्रि भी पन्द्रह महर्त की होती है जब सर्य १२२ वें मण्डल में जाता है, तब दिवस चौदह महत का होता है और जब १५३ वें मण्डल के अर्द्ध भाग में जाता है, तब तेरह मुहूर्त का दिन होता है और जब दूसरे से सर्व बाह्य १८३ वें मण्डल में सूर्य जाता है, तब ठीक बारह मुहूर्त का दिन होता है और उस समय रात्रि अठारह मुहूर्त की होती है । अर्थात् जितने परिमाण में दिन घटता जाता है, उतने ही परिमाण में रात्रि बढ़ती जाती है । इस सब का तात्पर्य यह है कि दिन और रात्रि दोनों के मिलकर ३० मुहूर्त होते हैं । इसलिये दिन परिमाण में जितनी हानि होती है, तब रात्रि के परिमाण में उतनी ही वृद्धि होती है और जब रात्रि के परिमाण में जितनी हानि होती है, तब उतनी ही दिन के परिमाण में वृद्धि होती है । दोनों के मिलकर ३० मुहूर्त होते हैं, यह सुनिर्णीत है। वर्षा का प्रथम समय १० प्रश्न-जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवजइ तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवजह; जया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवजह तया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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