________________
७४८
भगवती
सूत्र - श. ४ उ. १० लेश्या का परिवर्तन
जिस प्रकार सफेद वस्त्र, लाल पीले आदि रंग के संयोग को प्राप्त करके उसी रंग के रूप, वर्णरूप यावत् रंग के स्पर्श रूप परिणम जाता है, उसी प्रकार कृष्ण-लेश्या भी नील-लेश्या को प्राप्त करके तद्रूप यावत् तत्स्पर्श रूप से परिणम जाता है ।
जिस प्रकार कृष्ण - लेश्या नील- लेश्या का कहा, उसी प्रकार नील-लेश्या कापोतलेश्या पने, कापोत- लेश्या तेजोलेश्यापने, तेजोलेश्या पद्मलेश्यापने और पद्मलेश्या शुक्ललेश्यापने परिणम जाती है । इत्यादि सारा वर्णन कहना चाहिए ।
प्रज्ञापना सूत्र के सत्तरहवें 'लेश्या पद' का चौथा उद्देशक कहाँ तक कहना चाहिये ? तो इसके लिये कहा गया है कि 'परिणाम' इत्यादि द्वार गाथा में कहे हुए द्वारों की समाप्ति तक यह उद्देशक कहना चाहिये। उनमें से परिणाम द्वार का कथन तो कर दिया गया है । वर्ण द्वार में प्रश्न किया गया है कि 'हे भगवन् ! कृष्ण-लेश्या आदि का वर्ण कैसा है ? '
उत्तर - कृष्ण - लेश्या का वर्ण, मेघ आदि के समान काला है । नील- लेश्या का वर्ण, भ्रमर आदि के समान नीला है । कापोतलेश्या का वर्ण, खदिरसार ( खेरसार - कत्था ) आदि के समान कापोत है । तेजोलेश्या का वर्ण, शशक रक्त (खरगोश के खून) आदि के समान लाल है । पद्मलेश्या का वर्ग, चम्पक आदि के पुष्प के समान पीला है । और शुक्ललेश्या. का वर्ण, शंख आदि के समान सफेद है ।
Jain Education International
2
लेश्याओं का रस इस प्रकार है- कृष्णलेश्या का रस, नीम वृक्ष के समान तिक्त ( कड़वा ) है । नीललेश्या का रस, सूंठ के समान कटु ( तीखा ) है । कापोतलेश्या का रस, कच्चे बेर के समान कषैला है । तेजोलेश्या का रस, पके हुए आम्र के समान खटमीठा होता है । पद्म लेश्या का रस, चन्द्रप्रभा आदि मदिरा के समान कटुकषायमधुर ( तीखा, कषैला और मधुर तीनों संयुक्त ) है । शुक्ल लेश्या का रस, गुड आदि के समान मीठा है । श्याओं की गंध इस प्रकार है-कृष्ण, नील और कापोत, इन तीन लेश्याओं की गन्ध, दुरभिगन्ध है । और तेजो, पद्म और शुक्ल, इन तीन लेश्याओं की गन्ध, , सुरभिगन्ध है । कृष्ण, नील, और कापोत ये तीन लेश्याएँ अशुद्ध है, अप्रशस्त हैं, संक्लिष्ट हैं, शीत और रूक्ष हैं और दुर्गति का कारण हैं। तेजो, पद्म और शुक्ल, तीन लेश्याएं शुद्ध हैं, प्रशस्त हैं, असंक्लिष्ट हैं, स्निग्ध और उष्ण हैं तथा सुगति का कारण हैं ।
लेश्याओं का परिणाम तीन प्रकार का कहा गया है । यथा - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । इनमें से प्रत्येक के तीन तीन भेद करने से नौ, इत्यादि प्रकार से आगे आगे द करने चाहिए । छहों लेश्याओं में से प्रत्येक लेश्या, अनन्त प्रदेशवाली है । और इस तरह
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org