________________
भगवती सूत्र - ग. ४ उ. १-४ ईशानेन्द्र के लोकपाल ७४१
गाथा का अर्थ - इस चौथे शतक में दस उद्देशक हैं । इनमें से पहले के चार उद्देशकों में विमान सम्बन्धी कथन किया गया है। पांचवें से लेकर आठवें उद्देशक तक के चार उद्देशकों में राजधानियों का वर्णन है । नवमें उद्देशक में नैरयिकों का वर्णन है और दसवें उद्देशक में लेश्या सम्बन्धी वर्णन है । इस प्रकार इस शतक में दस उद्देशक हैं ।
१ प्रश्न - राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी इस प्रकार बोले - हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के कितने लोकपाल कहे गये हैं ?
१ उत्तर - हे गौतम ! उसके चार लोकपाल कहे गये हैं । यथा - सोम, यम, वैश्रमण और वरुण ।
२ प्रश्न - हे भगवन् ! इन लोकपालों के कितने विमान कहे गये है ? २ उत्तर - हे गौतम ! उनके चार विमान कहे गये हैं । यथा - सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सुवल्गु ।
३ प्रश्न - हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज का सुमन नामक महाविमान कहाँ है ?
३ उत्तर - हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल से यावत् ईशान नामक कल्प ( देवलोक ) है । उसमें यावत् पांच अवतंसक हैं। तथा अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक, और जातरूपावतंसक । इन चारों अवतंसकों के बीच में ईशानावतंसक है । उस ईशानावतंसक महाविमान से पूर्व में तिच्र्च्छा असंख्येय हजार योजन जाने पर देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल सोम महाराज का 'सुमन' नाम का महा- विमान है । उसका आयाम और विष्कम्भ अर्थात् लम्बाई और चौड़ाई साढे बारह लाख योजन है । इसकी सारी वक्तव्यता, तीसरे शतक में शक्रेन्द्र के लोकपाल सौम के महाविमान की वक्तव्यता के अनुसार अर्चनिका की समाप्ति तक कहनी चाहिए ।
एक लोकपाल के विमान की वक्तव्यता जहाँ पूरी होती है, वहाँ एक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org