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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. १० इन्द्र की परिषद् भावार्थ - १ प्रश्न - राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी इस प्रकार बोलेहे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के कितनी परिषदाएँ ( सभाएँ) कही गई हैं ? ७३५ १ उत्तर - हे गौतम ! उसके तीन परिषदाएँ कही गई हैं । यथा - शमिका ( अथवा - शमिता ) चण्डा और जाता। इस प्रकार क्रमपूर्वक यावत् अच्युत कल्प तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं । Jain Education International विवेचन - नवमें उद्देशक में इन्द्रियों के विषय में कथन किया गया है । देव भी इन्द्रियों वाले होते हैं । इसलिये इस दसवें उद्देशक में देवों के सम्बन्ध में कथन किया जाता है । चमरेन्द्र के तीन परिषदा हैं। समिका, ( शमिका - शमिता ) चण्डा और जाता । उनका विस्तृत वर्णन जीवाभिगम सूत्र में है । उसमें से कुछ वर्णन यहाँ दिया जाता है | समिका - स्थिर स्वभाव और समता के कारण इसे 'समिका' कहते हैं । अथवा अपने पर स्वामी द्वारा किये हुए कोप एवं उतावल को शान्त करने की सामर्थ्यवाली होने से इसे 'शमिका' कहते हैं । अथवा उद्धतता रहित एवं शान्त स्वभाव वाली होने से इसे ' शमिका' कहते हैं । शमिता के समान महत्ववाली न होने से साधारण कोपादि के प्रसंग पर कुपित हो जाने के कारण दूसरी परिषद् को 'चण्डा' कहते हैं । गंभीर स्वभाव न होने के कारण बिना ही प्रयोजन कुपित हो जानेवाली सभा का नाम 'जाता' है । इन तीनों सभाओं को क्रमशः आभ्यन्तर परिषद्, मध्यम परिषद् और बाह्य परिषद् कहते हैं । अर्थात् शमिता आभ्यन्तर परिषद् हैं, चण्डा मध्यम परिषद् है और जाता बाह्य परिषद् है । जब इन्द्र को कोई प्रयोजन होता है, तब वह आदर पूर्वक आभ्यन्तर परिषद् को बुलाता है और उसके सामने अपना प्रयोजन कहता है । मध्यम परिषद् बुलाने पर अथवा न बुलाने पर आती है और इन्द्र आभ्यन्तर परिषद् के साथ की हुई बातचीत को उसके सामने प्रकट करके निर्णय करता है । बाह्य सभा, बिना बुलाये आती है। इसके सामने इन्द्र अपने निर्णय किये हुए कार्य को कहता है और उसे सम्पादित करने की आज्ञा देता है । नव निकाय के इन्द्रों की परिषद् के नाम असुरकुमारों के समान ही हैं । वणव्यन्तर देवों की तीन परिषदा के नाम इस प्रकार है-इसा, तुडिया, दढरथा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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