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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ७ लोकपाल वरुण देव
(बालक) कहते हैं।
___(५३) वैतरणी-जो असुर मांस, रुधिर, राध, ताम्बा, सीसा आदि गरम पदार्थों से उबलती हुई नदी में नारकी जीवों को फेंक कर उन्हें तैरने के लिए बाध्य करते हैं, उन्हें 'वैतरणी' कहते हैं।
(१४) खरस्वर-जो वज्र कण्टकों से व्याप्त शाल्मली वृक्ष पर नारकी जीवों को चढ़ा कर, कठोर स्वर करते हुए अथवा करुण रुदन करते हुए नारकी जीवों को खींचते हैं, उन्हें 'खरस्वर' कहते हैं।
(१५) महाघोष-जो डर से भागते हुए नारकी जीवों को पशुओं की तरह बाड़े में बन्द कर देते हैं तथा जोर से चिल्लाते हुए उन्हें वहीं रोक रखते हैं, उन्हें 'महाघोष' कहते हैं। - पूर्वजन्म में क्रूर क्रिया तथा संक्लिष्ट परिणामवाले हमेशा पाप में लगे हुए भी कुछ जीव, पञ्चाग्नि तप आदि अज्ञान पूर्वक किये गये कायाक्लेश से आसुरी गति को प्राप्त करते हैं, वे ही परमाधार्मिक बनकर पहली तीन नरकों में नारकी जीवों को वष्ट देते हैं । जिस तरह यहाँ कोई मनुष्य भैसे, मेंढे और कुक्कुट (मुर्गा) आदि के युद्ध को देख कर खुश होते हैं । उसी तरह परमाधार्मिक देव भी कष्ट पाते हुए नारकी जीवों को देखकर खुश होते हैं । खुश होकर अट्टहास करते हैं, तालियां बजाते हैं । इन बातों से परमाधार्मिक देव बड़ा आनन्द मानते हैं।
लोकपाल वरुण देव
५ प्रश्न कहि णं भंते ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो सयंजले णामं महाविमाणे पण्णते ?
५ उत्तर-गोयमा ! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणस्स पञ्चत्थिमेणं सोहम्मे कप्पे असंखेजाइं, जहा सोमस्स तहा विमाणरायहाणीओ भाणियव्वा, जाव-पासायवडेंसया । णवरं-णामणाणत्तं । सक्कस्स गं० वरुणस्स महारण्णो जाव-चिटुंति, तं जहा
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