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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. ४ मेघ का विविध रूपों में परिणमन ६७७ १४ उत्तर-गोयमा ! णो आयड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छड्; एवं णो आयकम्मुणा, परकम्मुणा; णो आयप्पयोगेणं, परप्पयोगेणं ऊसिओदयं वा गच्छद, पययोदयं वा गच्छइ । १५ प्रश्न-से भंते ! किं बलाहए इत्थी ? १५ उत्तर-गोयमा ! बलाहए णं से, णो खलु सा इत्थी, एवं पुरिसे, आसे, हत्थी। __१६ प्रश्न-पभू णं भंते ! बलाहए एगं महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाइं जोयणाइं गमेत्तए ? . १६ उत्तर-जहा इत्थिरूवं तहा भाणियव्वं । णवरं-एगओ. चकवालं पि, दुहओचकवालं पि गच्छइ-भाणियव्वं । जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीया-संदमाणियाणं तहेव । कठिन शब्दार्थ- (बलाहए) बलाहक-मेघ । (आसे) अश्व-घोड़ा । (चक्कवालं) चक्रवाल-पहिया। भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या बलाहक (मेघ) एक बड़ा स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका रूप में परिणत होने में समर्थ है ? १२ उत्तर-हाँ, गौतम ! बलाहक ऐसा परिणत होने में समर्थ है। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या बलाहक, एक बड़ा स्त्रीरूप बनकर अनेक योजन तक जा सकता है ? १३ उत्तर-हाँ, गौतम ! वह जा सकता है। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह बलाहक, आत्मऋद्धि से गति करता है, या परऋद्धि से गति करता है ? . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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