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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ४ वायुकाय का वैक्रिय
का वाहन-पालखी) स्यन्दमानिका (म्याना) इन सब के रूपों की विकुर्वणा कर सकती है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं, अर्थात् वायुकाय, उपर्युक्त रूपों की विकुर्वगा नहीं कर सकती। किन्तु विकुर्वणा करती हुई वायुकाय, एक बडी पताका के आकार जैसे रूप की विकुर्वणा करती है।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वायुकाय, एक बडी पताका के आकार जैसे रूप को विकुर्वणा करके अनेक योजन तक गति कर सकती है ?
७ उत्तर-हाँ, गौतम ! वायुकाय ऐसा कर सकती है।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह वायुकाय, आत्मऋद्धि से गति करती है, या परऋद्धि से गति करती है ?
८ उत्तर-हे गौतम ! वह वायुकाय, आत्म ऋद्धि से गति करती है, किन्तु परऋद्धि से गति नहीं करती। इसी तरह से वह आत्मकर्म से और आत्मप्रयोग से भी गति करती है । इस तरह कहना चाहिए।
९. प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह वायुकाय, उच्छित-पताका (उठी हुई ध्वजा) के आकार से गति करती है ? या पतित-पताका (पडी हुई ध्वजा.) के . आकार से गति करती है ? .
९ उत्तर-हे गौतम ! वह उच्छित-पताका और पतित-पताका, इन दोनों आकार से गति करती है। .
१० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वायुकाय, एक दिशा में एक पताका के समान रूप बना कर गति करती है, या दो दिशाओं में दो पताका के समान रूप बना कर गति करती है ?
१० उत्तर-हे गौतम ! वह वायुकाय, एक दिशा में एक पताका के आकार रूप बना कर गति करती है, किन्तु दो दिशाओं में पताका के आकार वाला रूप बना कर गति नहीं करती।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! तो क्या वह वायुकाय, पताका है ? .
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