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________________ ६५० भगवती सूत्र - श. ३ उ २ असुरकुमारों का सौधर्मकल्प में जाने का दूसरा कारण कठिन शब्दार्थ - अहुणो ववण्णाण- - तत्काल उत्पन्न हुए, चरिमभवत्थाण --भव का अंत होते समय, पासउ -- देखें, जाणउ - - जानें | भावार्थ - ३० प्रश्न - - हे भगवन् ! असुरकुमार देव यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं, इसका क्या कारण है ? ३० उत्तर - हे गौतम ! अधुनोत्पन्न अर्थात् तत्काल उत्पन्न हुए तथा चरम भवस्थ अर्थात् च्यवन की तैयारी वाले देवों को इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् संकल्प उत्पन्न होता है कि अहो ! हमें यह दिव्य देवऋद्धि यावत् मिली है, प्राप्त हुई है, सम्मुख आई है। जैसी दिव्य देवऋद्धि यावत् हमें मिली है, यावत् सम्मुख आई है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि यावत् देवेन्द्र देवराज शक को मिली है, यावत् सम्मुख आई है, और जंसी दिव्य देवऋद्धि देवेन्द्र देवराज शक को मिली है यावत् सम्मुख आई है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि यावत् हमें भी मिली है यावत् सम्मुख आई है । तो हम जावें और देवेन्द्र देवराज शत्र के सामने प्रकट होवें और देवेन्द्र देवराज शक्र द्वारा प्राप्त उस दिव्य देवऋद्धि को हम देखें तथा देवेन्द्र देवराज शक्र भी हमारे द्वारा प्राप्त दिव्य देवऋद्धि को देखें । देवेन्द्र देवराज शत्र द्वारा प्राप्त दिव्य देवऋद्धि को हम जानें तथा हमारे द्वारा प्राप्त दिव्य देवऋद्धि को देवेन्द्र देवराज शत्र जाने । इस कारण से है गौतम ! असुरकुमार देव यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं । सेवं भंते ! सेवं भंते !! अर्थात् हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । है भगवन् ! यह इसी प्रकार है । चमरेन्द्र सम्बन्धी वृत्तान्त सम्पूर्ण हुआ । विवेचन - पहले के प्रकरण में यह बतलाया गया था कि भवप्रत्यय वैरानुबन्ध अर्थात् भव सम्बन्धी वैर के कारण असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक जाते हैं। इस प्रकरण में उनके सौधर्मकल्प तक जाने का दूसरा कारण बतलाया गया है । वह यह है कि असुरकुमार देव शकेन्द्र की दिव्य देवऋद्धि को देखने और जानने के लिए तथा अपनी दिव्य देवऋद्धि शन्द्र को दिखलाने और बतलाने के लिए ऊपर सौधर्म कल्प तक जाते हैं । ॥ इति तृतीय शतक का द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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