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भगवती सूत्र - श. ३ उ २ फैंकी हुई वस्तु को पकड़ने की देव शक्ति ६३९
२३ प्रश्न - हे भगवन् ! देव, पहले फेंके हुए पुद्गल को उसके पीछे जा कर ग्रहण कर सकता है, इसका क्या कारण है ?
२३ उत्तर - हे गौतम! जब पुद्गल फेंका जाता है. तब पहले उसकी गति शीघ्र होती है और पीछे उसकी गति मन्द हो जाती है। महा ऋद्धिवाला देव पहले भी और पीछे भी शीघ्र और शीघ्र गति वाला होता है, त्वरित और त्वरित गति वाला होता है । इसलिए देव फेंके हुए पुद्गल के पीछे जाकर उसे पकड़ सकता है।
२४ प्रश्न - हे भगवन् ! महा ऋद्धिवाला देव यावत् पीछे जाकर पुद्गल को पकड़ सकता है, तो देवेन्द्र देवराज शत्र, अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को क्यों नहीं पकड़ सका ?
२४ उत्तरर हे गौतम! असुरकुमार देवों का नीचे जाने का विषय शीघ्र, शीघ्र, तथा त्वरित त्वरित होता है । ऊँचे जाने का विषय अल्प, अल्प तथा मंद, मंद होता है । वैमानिक देवों का ऊँचा जाने का विषय शीघ्र, शीघ्र तथा त्वरित, त्वरित होता है और नीचे जाने का विषय अल्प, अल्प तथा मन्द मन्द होता है । एक समय में देवेन्द्र देवराज शक जितना क्षेत्र ऊपर जा सकता हैं, उतना क्षेत्र ऊपर जाने में वज्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र ऊपर जाने में चमरेन्द्र की तीन समय लगते हैं । अर्थात् देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वलोक कण्डक ( ऊंचा जाने का काल मान) सब से थोड़ा है और अधोलोक ausa (नीचे जाने का काल मान) उसकी अपेक्षा संख्येय गुणा है । एक समय में असुरेन्द्र असुरराज चमर, जितना क्षेत्र नीचा जा सकता है, उतना क्षेत्र नीचा जाने में शन्द्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में वज्र को तीन समय लगते हैं अर्थात् असुरेन्द्र असुरराज चमर का अधोलोक कण्डक ( नीचा जाने का काल मान) सब से थोड़ा है और ऊर्ध्वलोक कण्डक ( ऊंचा जाने का काल मान) उससे संख्येय गुणा है । हे गौतम ! इस कारण से देवेन्द्र . देवराज शऋ, अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को पकड़ने में समर्थ नहीं हो सका ।
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