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________________ भववती सूत्र-श. १ उ. १ तेइन्द्रियादि जीवों का वर्णन ७७ उत्कृष्ट बारह वर्ष की है । इन जीवों को आभोग आहार ('मैं आहार करता हूँ' इस प्रकार बुद्धिपूर्वक किया जाने वाला आहार) की अभिलाषा असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त बाद होती हैं । इन जीवों के स्थिति के अनुसार आहार का कोई निश्चित नियम नहीं है, अतएव 'विमात्रा' से कहा गया है। इन जीवों का आभोग आहार भी दो प्रकार का होता है-रोमाहार और प्रक्षेपाहार । रोमाहार उसे कहते हैं जो रोमों द्वारा अपने आप लिया जाता है । जैसे कि-जब वर्षा होती है तब रोमों द्वारों शीत अपने आप ही आजाता है । इस प्रकार रोमों द्वारा ग्रहण किये हुए आहार को वे पूर्ण रूप से खा जाते हैं । कवल (ग्रास) द्वारा जो आहार ग्रहण किया जाता है उसे प्रक्षेपाहार कहते हैं । प्रक्षेपाहार का बहुत सा भाग नष्ट हो जाता है और असंख्यातवां भाग शरीर रूप में परिणत होता है । इस कथन के आधार पर यह प्रश्न किया गया है कि जो पुद्गल स्पर्श में तथा आस्वाद में आये बिना ही नष्ट हो जाते हैं उनमें कौन से अधिक हैं ? अर्थात् स्पर्श में न आने वाले पुद्गल अधिक हैं या आस्वाद में न आने वाले ? इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया है कि आस्वाद में न आने वाले पुद्गल थोड़े हैं और स्पर्श न किये जाने वाले पुद्गल अनन्तगुणा हैं। . तेइन्द्रियादि जीवों का वर्णन ... ४० तेइंदिय-चउरिदियाणं णाणत्तं टिईए जाव णेगाइं च णं भागसहस्साइं अणाघाइज्जमाणाई अणासाइज्जमाणाई अफासाइजमाणाई विद्धंस आगच्छंति । ४१ प्रश्न-एएसिं गं भंते ! पोग्गलाणं अणाघाइजमाणाणं अणासाइजमाणाणं अफासाइजमाणाणं पुच्छा। ४१ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा पोग्गला अणाघाइजमाणा, अणासाइजमाणा अणंतगुणा, अफासाइजमाणा अणंतगुणा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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