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भगवती सूत्र - श. १ उ. १ असुरकुमार देवों का वर्णन
२२ उत्तर-असुरकुमाराभिलावे णं जहा णेरइयाणं, जाव मो अचलियं कम्मं णिज्जरेंति ।
शब्दार्थ - भंते - हे भगवन् ! असुरकुमाराणं- असुरकुमारों की, ठिई स्थिति, केवइयंकालं - कितने काल की, पण्णत्ता - कही गई है ?
गोयमा - हे गौतम! जहणेणं - जघन्य, दस वाससहस्साई - दस हजार वर्ष की और, उक्कोसेणं-उत्कृष्ट, साइरेगं सागरोवमं- सागरोपम से कुछ अधिक की है । मंते - हे भगवन् ! असुरकुमारा - असुरकुमार, केवइयकालस्स- कितने समय में, आर. मंति- श्वास लेते हैं, वा-और कितने समय में, पाणमंति- निःश्वास छोड़ते हैं ?
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गोयमा - हे गौतम ! जहण्णेणं - जघन्य, सत्तण्हं - सात, थोवाणं स्तोक रूप काल से और, उक्कोसेणं-उत्कृष्ट, साइरेगस्स पक्खस्स - एक पक्ष - पखवाड़े से कुछ अधिक काल में श्वास लेते और छोड़ते हैं ।
भंते - हे भगवन् ! क्या, असुरकुमारा - असुरकुमार, आहारट्ठी - आहार के अभिलाषी होते हैं ?
हंता - हाँ गौतम ! आहारट्ठी- आहार के अभिलाषी होते हैं ।
भंते - हे भगवन् ! असुरकुमाराणं - असुरकुमारों की, केवइयकालस्स- कितने काल आहारट्ठे - आहार की अभिलाषा, समुप्पज्जइ - उत्पन्न होती है ?
गोमा - हे गौतम! असुरकुमाराणं - असुरकुमारों का, आहारे आहार, दुबिहे - दो प्रकार का, पण्णत्ते- कहा गया है, आभोगणिव्वत्तिए य- आभोग निर्वर्तित और, अणाभोगव्वित्तिए - अनाभोग निर्वर्तित, तत्थ इन दोनों में से, जे- जो, अणाभोगणिव्वत्तिए - अनाभोग निर्वर्तित अर्थात् बिना इच्छा के होने वाला, आहारट्ठे- आहार है, उसकी अभिलाषा, अविरहिए- विरह रहित, अणुसमयं - निरन्तर समुप्पज्जइ - उत्पन्न होती है और, आभोगव्वित्तिए - आभोग निर्वार्तित आहार की अभिलाषा, जहणेणं - जघन्य, चउत्थभत्तस्स - चतुर्थ भक्त अर्थात् एक अहोरात्र से और, उक्कोसेणं - उत्कृष्ट, साइरेगस्स वाससहस्सस्स - एक हजार वर्ष से कुछ अधिक काल से, आहारट्ठे-आहार की अभिलाषा, समुप्पज्जइ - उत्पन्न होती है ।
भंते-हे भगवन् ! असुरकुमारा - असुरकुमार, कि- किन पुद्गलों का, आहारं आहा
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