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________________ ४. भगवतीसूत्र-श. १ उ. १ नारक जीवों का वर्णन आहार किये हुए, पोग्गला-पुद्गल, परिणया-परिणत हुए हैं ? क्या, आहारिया-आहार किये हुए और, आहारिज्जमाणा-आहार किये जाते हुए, पोग्गला-पुद्गल, परिणया-परिणत हुए हैं ? अणाहारिया-अनाहारित-आहार नहीं किये हुए तथा, आहारिज्जस्समाणाआगे जो आहार रूप में ग्रहण किये जावेंगे वे, पोग्गला-पुद्गल, परिणया-परिणत हुए हैं ? मनाहारिया-क्या अनाहारित-जो आहार नहीं किये गये है वे और, अणाहारिजस्समाणाजो आगे भी आहार रूप से ग्रहण नहीं किये जावेंग वे, पोग्गला-पुद्गल, परिणयापरिणत हुए हैं ? . गोयमा-हे गौतम ! (१) गेरइयाण-नैरयिक जीवों के, पुवाहारिया-पहले आहार किये हुए, पोग्गला-पुद्गल, परिणया-परिणत हुए हैं । (२) आहारिया-आहार किये हुए पुद्गल, परिणया-परिणत हुए हैं और माहारिन्नमामा-आहार किये जाते हुए पुद्गल,परिणमंत्रि-परिणत होते हैं । (३) अणाहारिया-अनाहारित-आहार नहीं किये हुए, पोग्गलापुद्गल, जो परिणया-परिणत नहीं हुए हैं, और आहारिजस्समाणा-जो पुद्गल आहार रूप से ग्रहण किये जायेंगे वे, परिणमित्संति-परिणत होंगे। (४) अगाहारिया-अनाहारित -आहार नहीं किये गये वे पुद्गल, गो परिणया-परिणत नहीं हुए हैं, और अणाहारिज्जस्स. मागा-जो पुद्गल आहार नहीं किये जायेंगे वे, जो परिणमिस्संति-परिणत नहीं होंगे। ७ भंते-हे भगवन् ! क्या, रइयाणं-नैरयिक जीवों के, पुब्बाहारिया-पहले आहार किये हुए, पोग्गला-पुद्गल, चिया-चय को प्राप्त हुए हैं ? पुच्छा-इत्यादि रूप से प्रश्न करना चाहिए। जहा-जैसे, परिणया-परिणत का कहा, तहा-वैसे ही, चिया वि-चय का भी कहना चाहिए, एवं-इसी तरह, उवचिया-उपचित, उदीरिया-उदीरित, वेड्या-वेषित और णिज्जिणा-निर्जीर्ण का भी कह देना चाहिए। गाथा का शब्दार्थ इस प्रकार है परिणय-परिणत, चिया-चित, उवचिया-उपचित, उदीरिया-उदीरित, बेहयावेदित, य-और, णिज्जिण्णा-निर्जीर्ण, एक्केकम्मि-इन एक एक, पयम्मि-पद में, चउम्विहाचार चार प्रकार के, पोग्गला-पुद्गल विषयक प्रश्न और उत्तर, होति-होते हैं। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नारकी जीवों के पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए हैं ? क्या आहार किये हुए तथा वर्तमान में आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए हैं ? क्या जो पुद्गल आहार नहीं किये गये हैं वे और जो आगे आहार रूप में ग्रहण किये जावेंगे वे परिणत हुए हैं ? क्या जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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