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. भगवती सूत्र-श. २ उ. १० पंचास्तिकाय वर्णन
समय अर्थात् काल से उपलक्षित क्षेत्र 'समय-क्षेत्र' कहलाता है । सूर्य की गति से प्रकट होने वाला दिवस मासादि रूप काल, मनुष्य क्षेत्र में ही हैं, इसके आगे नहीं है। क्योंकि इससे आगे के सूर्य, चर (गति वाले) नहीं हैं, किन्तु अचर (स्थिर) हैं।
इस विषय में जीवाभिगम सूत्र में जो वर्णन दिया है, वह यहां भी कहना चाहिए, किन्तु वहाँ जो ज्योतिषी देवों का वर्णन दिया गया है, वह यहाँ नहीं कहना चाहिए । यावत् मनुष्यलोक किसे कहते हैं ? इस विषय में एक संग्रह गाथा दी गई है। वह इस प्रकार है;
अरिहंत समय-बायर-विज्जू-थणिया बलाहगा अगणी।
आगर-णिहि-गई-उवराग-णिग्गमे बुट्टिवयर्ण-च ।।... अर्थ-मानुषोत्तर पर्वत तक मनुष्यलोक कहलाता है । जहां तक अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका और मनुष्य हैं, वहाँ तक 'मनुष्यलोक' कहलाता है। जहाँ तक समय, आवलिका आदि काल है, स्थूल बिजली है, मेघ का स्थूल गड़गड़ाहट है, स्थूल मेघ बरसते हैं, स्थूल अग्निकाय है, आगर, निधि, नदी, उपराग (चन्द्र सूर्य का ग्रहण) है, चन्द्र, सूर्य, तारा का अतिगमन (उत्तरायण), निर्गमन (दक्षिणायन), दिन रात्रि का बढ़ना और घटना, इत्यादि हैं, वहाँ तक समय क्षेत्र-मनुष्यक्षेत्र है ।
॥ दूसरे शतक का नौवाँ उद्देशक समाप्त ॥
शतक २ उद्देशक १०
पंचास्तिकाय वर्णन ५३ प्रश्न-कइ णं भंते ! अथिकाया पण्णत्ता ?
५३ उत्तर-गोयमा ! पंच अत्विकाया पण्णता, तं जहाःधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए।
५४ प्रश्न-धम्मत्थिकाए णं भंते ! कतिवण्णे, कतिगंधे, कति
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