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________________ ५०८ भगवती सूत्र-श. २ 3. ८ चमरचंचा राजधानी देशोन दो योजन है। उसका परिक्षेप पावरवेदिका के परिक्षेप जितना है । वह काला है और काली कान्ति वाला है। उस पर्वत का ऊपर का भाग बहुसम रमणीय है। वह भूमिभाग मुरजमुख के समान है, मृदंग पुष्कर के समान है सरोवर के तल के समान है । आदर्शमण्डल, हाथ का तला (हथेली) और चन्द्रमण्डल के समान है। उस उत्पात पर्वत के ऊपर बीचोबीच एक प्रासादावतंसक है । वह अत्यन्त सुन्दर और कान्ति से सफेद और प्रभासित है । वह मणि, सुवर्ण और रत्नों की कारीगरी से विचित्र है। उसका ऊपरी भाग भी अत्यन्त सुन्दर है । उस पर हाथी, घोड़ा, बैल आदि के अनेक चित्र हैं। प्रासादावतंसक के बीच में चमरेन्द्र का सिंहासन है। उस मिहामन के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में और उत्तर पूर्व में चमरेंद्र के चौसठ हजार सामानिक देवों के चौसठ हजार भद्रासन हैं । इसी प्रकार पूर्व में परिवार सहित पांच पटरानियों के पांच भद्रासन सपरिवार हैं । दक्षिण पूर्व में आभ्यन्तर परिषद् के चौबीस हजार देवों के चौबीस हजार भद्रासन हैं। इसी प्रकार दक्षिण में मध्यम परिषद् के अट्ठाईस हजार देवों के अट्ठाईस हजार भद्रासन हैं। दक्षिण पश्चिम में बाह्यपरिषद् के बत्तीस हजार देवों के बत्तीस हजार भद्रासन हैं। पश्चिम में सात सेनाधिपतियों के सात भद्रासन हैं और चारों दिशाओं में आत्मरक्षक देवों के चौसठ हजार, चौसठ हजार भद्रासन हैं । इस प्रकार उस सिंहासन का वर्णन है । एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं जंबूदीवप्पमाणा । पागारो दिवड्ढं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पन्नासं जोयणाई विखंभेणं, उवरिं अद्धतेरसजोयणाई विक्खंभेणं । कविसीसगा अद्धजोयणा आयामेणं कोसं विक्खंभेणं देसूणं अद्धजोयणं उड्ढं उच्चतेणं । एगमेगाए बाहाए पंच पंच दारसया अड्ढाइन्जाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अधं विक्खंभेणं, उवारियले णं सोलसजोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, पन्नास जोयणसहस्साई पंच य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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