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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ चलमाणे आदि प्रश्न
षता से रहित होने से अर्थात् सामान्य कर्म के आश्रित होने से एकार्थक हैं और केवलज्ञान की उत्पत्ति के साधक हैं । एक अन्तर्मुहूर्त में ही ये केवलज्ञान की उत्पत्ति के लिए व्यापार करते हैं । अतएव इन्हें एकार्थक कहा गया है।
इन पहले के चार पदों को एकार्यक कह देने से पिछले पांच पद अनेकार्थ (नानार्थ) हैं, यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है । फिर भी अल्पबुद्धि वालों को भी तत्त्व अच्छी तरह समझ में आजाय, इस अपेक्षा से पिछले पांच पद अनेकार्थ हैं, यह बात अलग कही गई है।
. छिन्जमागे छिपणे' आदि पांच पद विगत पक्ष की अपेक्षा से अनेकार्थक हैं । 'छिज्जमागे छिण्णे' यह पद कर्मों की स्थिति की अपेक्षा से है। केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद तेरहवें गुणस्यानवर्ती सयोगी केवली, जव अयोगी केवली होने वाले होते है अर्थात् मन, वचन, काया के योगों को रोक कर अयोगी अवस्था में पहुंचने के उन्मुख होते हैं, तब वेदनीय कर्म, नामकर्म और गोत्रकर्म की जो प्रकृति शेष रहती है उसकी लम्बे काल की स्थिति को अपवर्तन करण द्वारा अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बना डालते हैं अर्थात् लम्बी स्थिति को छोटी कर लेते हैं । यह कर्मों का छेदन' करना कहलाता है । कर्मों की स्थिति को कम करने के साथ ही वे कर्मों के रस को भी कम कर डालते हैं । कर्मों के रस को कम करना ‘भेदन' कहलाता है । तेरहवें गुणस्थानवर्ती केवली स्थितिघात के साथ रसघात भी करते हैं।
- यद्यपि कर्म-स्थिति और कर्म-रस का नाश एक ही साथ होता है, तथापि स्थिति के खण्ड अलग हैं और रस के खण्ड अलग हैं । स्थिति के खण्डों से रस के खण्ड अनन्तगुणा हैं। इस कारण 'छिज्जमाण' और 'भिज्जमाण' पदों का अर्थ अलग-अलग है। 'छिज्जमाण' यह पद स्थिति खण्ड की अपेक्षा है और 'भिज्जमाण' यह पद रसखण्ड की अपेक्षा है । तीसरा पद 'इज्झमाणे दड्डे' है। यह प्रदेशबन्ध की अपेक्षा से है । कर्म के प्रदेशों का घात होना कर्म का 'दाह' कहलाता है । अनन्तानन्त कर्म प्रदेशों को अकर्म रूप में परिणत कर देना कर्म का 'दाह' करना कहलाता है ।
__प्रदेशों का अर्थ है 'कर्म का दल' । पांच ह्रस्व अक्षर उच्चारण काल जितने परि- . माण वाली और असंख्यात समय युक्त गुणश्रेणी की रचना द्वारा कर्म प्रदेश का क्षय किया नाता है । यद्यपि यह गुणश्रेणी पांच ह्रस्व अक्षर उच्चारण काल के बराबर काल वाली है, किन्तु इतने से काल में ही असंख्यात समय हो जाते हैं । तेरहवें गुणस्थान से इस गुणश्रेगी की रचना होती है । इस गुणश्रेणी द्वारा पूर्व रचित और प्रथम समय से प्रारम्भ
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