SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ श्रावकों के प्रश्न ४७९ भावार्थ-फिर एक जगह एकत्रित होकर पैदल चलते हुए वे तुंगिया नगरी के बीचोबीच होकर पुष्पवती उद्यान में आये। स्थविर भगवंतों को देखते ही उन्होंने पाँच प्रकार के अभिगम किये। वे इस प्रकार हैं-१ सचित्त द्रव्य जैसे फूल, ताम्बूल आदि का त्याग करना। २ अचित्त द्रव्य-जैसे वस्त्र आदि को मर्यादित (संकुचित) करना। ३ एक पट के (बिना सीये हुए) दुपट्टे का उत्तरासंग करना । ४ मुनिराज के दृष्टिगोचर होते ही दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर लगाना । ५ मन को एकाग्र करना । ___ इस प्रकार पाँच अभिगम करके वे श्रमणोपासक स्थविर भगवन्तों के पास जाकर तीन बार प्रदक्षिणा करके यावत् मन वचन काया रूप तीन प्रकार को पर्युपासना (सेवा) से पर्युपासना करने लगे। इसके बाद उन स्थविर भगवंतों ने उन श्रमणोपासकों को तथा उस बडी परिषद् को केशीश्रमण की तरह चार महाव्रत वाले धर्म का उपदेश दिया। यावत् उन श्रमणोपासकों ने अपनी श्रमणोपासकता द्वारा उन स्थविर भगवंतों की आज्ञा का आराधन किया यावत् धर्मकथा पूर्ण हुई। विवेचन-वे श्रमणोपासक किसी सवारी में बैठ कर नहीं, किन्तु पैदल चल कर उन स्थविर भगवन्तों की सेवा में पहुचे । स्थविर भगवन्तों को देखते ही पांच प्रकार के अभिगम किये । वहाँ पहुंच कर मन, वचन और काया रूप तीन प्रकार की पर्युपासना से वे उनकी पर्युपासना. करने लगे। उन स्थविर भगवन्तों ने उस महती परिषद् को और श्रमणोपासकों को धर्मोपदेश दिया। तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट-तुटु० जाव हयहियया तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति जाव-तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति, पज्जुवासित्ता एवं वयासी- ३५ प्रश्न-संजमे णं भंते ! किंफले ? तवे णं भंते ! किंफले ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy