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________________ भगवती सूत्र - श. २ उ. ५ स्थविरों के पधारने के समाचार सम्पन्न का अर्थ हैं - लज्जायुक्त अथवा संयम युक्त । लाघवसम्पन्न अर्थात् द्रव्य से थोड़ी उपधि रखने वाले और भाव से अभिमान का त्याग करने वाले । ओजस्वी - दृढमनोवृत्ति वाले । तेजस्वी-तेज वाले-शरीर की प्रभा वाले । वर्चस्वी - विशिष्ट प्रभाव से युक्त अथवा जीवन वचस्वी - प्रभाव युक्त वचन वाले प्रभावशाली वक्ता । यशस्वी - ख्याति वाले । की आशा से रहित और मरण के भय से रहित थे । वे तपस्वी थे, गुणवन्त - संयम सम्बन्धी गुणयुक् । वे पिण्डविशुद्धि आदि चरणसत्तरि और श्रमण धर्म आदि करणसत्तरि गुणों से युक्त थे । वे इन्द्रियों का निग्रह करने वाले और दृढ़ मनोवृत्ति वाले थे । वे मार्दव - मृदुता ( कोमलता) और आर्जव - ऋजुता ( सरलता ) से युक्त थे । वे उदय में आई हुई कषाय को निष्फल बनाने वाले थे और नवीन कषाय का उदय ही नहीं होने देते थे । वे क्षमा और त्याग के गुणों से युक्त थे । वे अपनी तप संयमादि क्रिया के फल का निदान नहीं करने वाले थे । वे धीर और साधुवृत्ति में लीन थे । उनके प्रश्नोत्तर साधु मर्यादा के अनुसार निर्दूषण होते थे । वे कुत्रिकापणभूत थे । स्वर्गलोक, मर्त्यलोक और पाताल लोक, इन तीनों लोकों में होने वाली वस्तु जिस दूकान में मिले उसे कुत्रिकापण कहते हैं। इसी प्रकार वे स्थविर भी सर्व गुण सम्पन्न थे, सब प्रकार का बोध देने में समर्थ थे, इसीलिए उनको कुत्रिकापण की उपमा दी गई है । इत्यादि अनेक गुणों से युक्त स्थविर भगवन्त वहाँ पधारें । ४७५ तणं तुंगिया ए नयरीए सिंघाडग- तिअ - चउक्क चच्चर महापह-पहेसु, जाव - एगदिसाभिमुहा णिज्जायंति । तए णं ते समणोवासया इमी से कहाए लट्टा समाणा हट्ट-तुट्टा, जाव सहावेंति, सदावित्ता एवं वयासी:- एवं खलु देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जाइसम्पण्णा, जाव अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति । Jain Education International * कुत्रिकापण - कु - पृथ्वी । त्रिक-तीन आपण-दुकान । अर्थात् तीन लोक की वस्तुएं जिस दुकान में मिले, उसे 'कुत्रिकापण' कहते हैं। यह दुकान देव। धिष्ठित होती है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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