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________________ भगवती सूत्र - श. २ उ ५ तुंगिका के श्रावकों का वर्णन इसलिए झूठन बहुत पड़ता था । अथवा उनके घर विविध प्रकार का और बहुत अशन पान तैयार होता था । ४७० 'बहुदासीदास गो-महिस-गवेलयप्पभूया' अर्थात् उनके यहां बहुत से दास दासी रहते थे तथा बहुतसी गायें, भैसें भेड़ और बकरियाँ आदि पालतू जानवर थे । 'बहुजणस्स अपरिभूया' - बहुजन मिलकर भी उनका पराभव नहीं कर सकते थे 1 अभिगयजीवा ऽजीवा, उवलद्वपुण्ण- पावा आसव-संवर निज्जरकिरिया ऽहिकरण-बंध मोक्खकुसला, असहेज्जदेवाऽसुरनाग-सुवण्णजक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरुस - गरुल- गंधव्व-महोरगाई एहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणतिकमणिजा, णिग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया निव्वितिमिच्छा, लट्टा गहियट्टा पुच्छि या अभिगड्डा विणिच्छियट्ठा, अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ता, 'अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे, अयं परमट्ठे, सेसे अणट्टे' ऊसियफलिहा,. अवंगुयदुवारा, चियत्तंते उरघरप्पवेसा, बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमणपञ्चक्खाण-पोसहोववासेहिं, चाउदस- ट्ठमुद्दिट्ठ- पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा, समणे निग्गंथे फासु- एसंणिजेणं असणपाण- खाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह- कंबल-पायपुंछणेणं पीढ-फलगसेजा-संथारएणं ओसह-भेसज्जेणं पडिला भेमाणा अहापडिग्गहिएहिं कम्मे अप्पा भावेमाणा विहरंति । Jain Education International · - विशेष शब्दों के अर्थ- अभिगयजीवाजीथा – जिन्होंने जीव अजीव को समझ लिया, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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