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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ गर्भ विचार-पिता, पुत्र ४६५ पैदा नहीं हो सकता । वह तो नया शुक शोणित ग्रहण करके नये शरीर का ही निर्माण करता है । अतः 'कायभवस्थ' का अर्थ 'उसी माता का गर्भ' करना संगत लगता है। - मनुष्य और तिर्यञ्च का वीर्य बारह मुहूर्त तक योनिभूत गिना जाता है अर्थात् मानुषी या पञ्चेन्द्रिय तियंञ्चणी की योनि में गया हुआ वीर्य बारह मुहूर्त तक सचित्त रहता है । उस वीर्य में बारह मुहूर्त तक सन्तानोत्पादक शक्ति रहती हैं । ३० प्रश्न-एगजीवे णं भंते ! एगभवग्गहणेणं केवइयाणं पुत्तताए हव्वमागच्छइ ? ___३० उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं इक्कस्स वा दोण्हं वा तिण्हं वा उक्कोसेणं सयपुहुत्तस्स जीवाणं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छइ । ३१ प्रश्न-एगजीवस्स णं भंते ! एगजीवभवग्गहणेणं केवइया जीवा पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति ? ३१ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हन्वमागच्छंति । ..३२ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, जाव-हव्वमागच्छंति ? ३२ उत्तर-गोयमा ! इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणीए मेहुणवत्तिए नामं संजोए समुष्पजइ । ते दुहओ सिणेहं संचिणंति, संचिणित्ता तत्थ णं जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति, से तेणटेणं जावहव्वमागच्छंति। - ३३ प्रश्न-मेहुणेणं भंते ! सेवमाणस्स केरिसिए असंजमे कजइ ? .. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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