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भगवती सूत्र - श. २ उ. ३ पृथ्वियाँ
योजन की है। सातवीं नरक में अप्रतिष्ठान नामक नरकेन्द्रक एक लाख योजन विस्तृत बाकी चार नरकावास असंख्येय योजन विस्तृत हैं । अप्रतिष्ठान नामक संख्येय विस्तृत नरकावास का आयाम विष्कम्भ अर्थात् लम्बाई चौड़ाई एक लाख योजन है । तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष तथा कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल उसकी परिधि है । परिधि का यह परिमाण जम्बूद्वीप की परिधि की तरह गणित के हिसाब से निकलता है । बाकी चारों का आयाम विष्कम्भ ( लम्बाई चौड़ाई) असंख्यात योजन है ।
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वर्ण-नरकावास भयङ्कर रूप वाले होते हैं । अत्यन्त काले काली प्रभा वाले तथा देखने वाले के भय के कारण उत्कट रोमाञ्च वाले होते हैं । प्रत्येक नरकावास का रूप भय उत्पन्न करता है ।
गन्ध-सांप, गाय, घोड़ा, भैंस आदि के सड़े हुए मृतकलेवर से भी कई गुनी दुर्गन्ध नरकावासों से निकलती है । उनमें कोई भी वस्तु रमणीय और प्रिय नहीं होती ।
स्पर्श - खड्ग की धार, क्षुरधार, कदम्बचीरिका (एक तरह का घास जो डाभ से भी बहुत तीखा होता है) शक्ति, सूइयों का समूह, बिच्छू का डंक, कपिकच्छू ( खुजली पैदा करने वाली बेल), अंगार, ज्वाला, छाणों की आग आदि से भी अधिक कष्ट देने वाला नरकों का स्पर्श होता है ।
प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अर्थात् पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रस काय, इन सभी कायों के जीव, जो व्यवहार राशि में आ चुके हैं: नरक में पांचस्थावर एवं नैरयिक रूप में अनेकबार एवं अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं ।
॥ दूसरे शतक का तीसरा उद्देशक समाप्त ॥
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