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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आय स्कन्दक की अंतिम आराधना ४४५ बड़ीनीत लघुनीत करने की भूमि, पुरत्याभिमुहे-पूर्व की तरफ मुख करके, संपलियंकणिसण्णे --पर्यक आसन से बैठ कर, करयलसंपरिग्गहियं-- दोनों हाथ जोड़ कर, बसनहंदसों नख सहित, सिरसावत्तं-मस्तक पर से आवर्तन देकर, इयाणि-इस समय, अणवकंखमाने-वांछा न करते हुए। भावार्थ- भगवान् की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर स्कन्दक मुनि को बड़ा हर्ष एवं संतोष हुआ। फिर खडे होकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी को तीन बार प्रदक्षिणा और वन्दना नमस्कार करके स्वयमेव- पांच महाव्रतों का आरोपण किया। फिर साधु-साध्वियों को खमा कर तथारूप के योग्य कडाई स्थविरों के साथ धीरे धीरे विपुल पर्वत पर चढ़े। फिर मेघ के समूह सरीखे प्रकाश वाली (काली) और देवों के आगमन के स्थानरूप पृथ्वीशिलापट्ट की प्रतिलेखना करके एवं उच्चार-पासवण भूमि (बडोनीत लघुनीत की भूमि) की प्रतिलेखना करके पृथ्वीशिलापट्ट पर डाम का संथारा बिछा कर, पूर्वदिशा की ओर मुख करके, पर्यकासन में बैठ कर, दसों नख सहित दोनों हाथों को शिर पर रख कर (दोनों हाथ जोड़ कर) इस प्रकार बोले-अरिहन्त भगवान् यावत् जो मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं, उन्हें नमस्कार हो, तथा अविचल शाश्वत सिद्ध स्थान को प्राप्त करने की इच्छा वाले श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को नमस्कार हो। वहां रहे हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी को यहां रहा हुआ में वन्दना करता हूं। वहां रहे हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी यहां पर रहे हुए मुझे देखें। ऐसा कह कर भगवान् को वन्दना नमस्कार किया । वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले-मैंने पहले श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास यावज्जीवन के लिए सर्व प्राणातिपात का त्याग किया था यावत् मिथ्यावर्शनशल्य तक अठारह ही पापों का त्याग किया था। इस समय भी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास यावज्जीवन के लिए सर्व.. प्रागातिपात से लेकर मिन्यादर्शनशल्य तक अठारह ही पापों का त्याग करता हूं और यावज्जीवन के लिए अशन, पान, खादिम और स्वादिम, इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करता तथा यह मेरा शरीर जो कि मुझे इष्ट, कान्त, प्रिय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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