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________________ ४३८ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक के शरीर की कृशता . . विशेष शब्दों के अर्थ--उरालेणं--उदार, विउल--विपुल, पयत्तेणं--प्रदत्त, पग्गहिएण-प्रगृहीत-गृहण किया हुआ, सस्सिरिएणं-श्री शोभायुक्त, उदग्गेणं-उत्तरोतर, उदत्तेणं-उदात्त श्रेष्ठ, सुक्के-शुष्क, लुक्खे-रुक्ष, निम्मंसे-निर्मास,अद्विचम्मावणडे-हड्डी और चर्म से वेष्टित, किडिकिडिभूयाए-हड्डियां खड़ खड़ करने लगी, किसेकृश-दुर्बल, धमणिसंतए-जिनकी नाडियां ऊपर दिखाई देती है, कटुसगडिया-लकड़े की भरी गाड़ी, हुयासणे-हुताशन-अग्नि, भासरासिपडिच्छण्णे-राख के ढर से ढकी हुई, . तव-तेयसिरिए-तप तेज को शोभा से । । भावार्थ- इस के बाद वे स्कन्दक अनगार पूर्वोक्त प्रकार के उदार, विपुल, प्रदत्त, प्रगृहीत, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्यरूप, मंगलरूप, शोभायुक्त, उत्तम उदन-उत्तरोत्तर वृद्धियुक्त, उदात्त-उज्ज्वल, सुन्दर, उदार और महान् प्रभाव वाले तप से शुष्क हो गये, रुक्ष हो गये, मांस रहित हो गये, उनके शरीर की हड्डियां चमडे से ढकी हुई रह गई । चलते समय हड्डियां खड़खड़ करने लगीं। वे कृश-दुबले हो गये। उनकी नाड़ियां सामने दिखाई देने लगीं। अब वे केवल अपने आत्मबल से ही गमन करते थे, खडे रहते थे, तथा वे इस : प्रकार के दुर्बल हो गये कि भाषा बोल कर, भाषा बोलते समय और भाषा बोलने के पहले, 'मैं भाषा बोलूंगा' ऐसा विचार करने मात्र से) वे ग्लानि को प्राप्त होते थे, उन्हें कष्ट होता था। जैसे सूखी लकड़ियों से भरी हुई गाडी, पत्तों से भरी हई गाडी, पत्ते, तिल और सूखे सामान से भरी हुई गाडी; एरण्ड की लकड़ियों से भरी हई गाडी, कोयले से भरी हुई गाडी, ये सब गाड़ियां धूप में अच्छी तरह सुखाकर जब चलती हैं, तो खड़ खड़ आवाज़ करती हुई चलती हैं और आवाज करती हुई खडी रहती है। इसी प्रकार जब स्कन्दक अनगार चलते, तो उनकी हड्डियां खड़ खड़ आवाज करती और खडे रहते हुए भी खड़ खड आवाज करतीं । यद्यपि वे शरीर से दुर्बल हो गये थे, तथापि वे तप से पुष्ट थे। उनका मांस और खून क्षीण हो गये थे। राख के ढेर में दबी हुई अग्नि की तरह वे तप द्वारा, तेज द्वारा और तप तेज की शोभा द्वारा अतीव शोभित हो रहे थे। विवेचन-स्कन्दक मुनि ने जिस तप का आचरण किया था वह किसी भी प्रकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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