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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-गुणरत्न संवत्सर तप
चौदहवें मास में अट्ठाईस, पन्द्रहवें मास में तीस और सोलहवें मास में बनीस दिन तपस्या के होते हैं । ये सब मिला कर ४०७ दिन तपस्या के होते हैं। पारणे के दिन इस प्रकार है ;
पहले मास में पन्द्रह, दूसरे मास में दस, तीसरे मास में आठ, चौथे मास में छह, पांचवें मास में पांच, छठे मास में चार, सातवें मास में तीन, आठवें मास में तीन, नववें मास में तीन, दसवें मास में तीन, ग्यारहवें मास में तीन, बारहवें मास में दो, तेरहवें मास में दो, चौदहवें मास में दो, पन्द्रहवें मास में दो, सोलहवें मास में दो दिन पारणे के होते हैं। ये सब मिला कर ७३ दिन पारणे के होते हैं । तपस्या के ४०७ और पारणे के ७३-ये दोनों मिला कर ४८० दिन होते हैं अर्थात् सोलह महीनों में यह तप पूर्ण होता है । इस तप में, किसी महीने में तपस्या और पारणे के दिन मिला कर तीस से अधिक हो जाते हैं और किसी मास में तीस से कम रह जाते हैं, किन्तु कम और अधिक दिनों की एक दूसरे में पूर्ति कर देने से तीस की पूर्ति हो जाती है । इस तरह से यह तप बराबर सोलह मास में पूर्ण हो जाता है।
'च उत्थभत्त' शब्द का अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार लिखा है ;- "चउत्थं चउत्थेणं, त्ति चतुर्थभक्तं यावद् भक्तं त्यज्यते, यत्र तच्चतुर्थम् इयं चोपवासस्य संज्ञा, एवं षष्ठादिकमुपवासद्वयादेरिति ।" . .
अर्थ-जिस तप में चार टंक का आहार छोड़ा जाय, उसे 'चउत्थभत्त-चतुर्थभक्त' कहते है। यह 'चतुर्थभक्त' शब्द का शब्दार्थ (व्युत्पत्त्यर्थ) है, किन्तु 'चतुर्थभक्त' यह उपवास का नाम है । उपवास को चतुर्थभक्त कहते हैं । अतः चार टंक का आहार छोड़ना, यह अर्थ नहीं लेना चाहिये । इसी प्रकार षष्ठभक्त, अष्ठभक्त, आदि शब्द-बेला, तेला आदि की संज्ञा है। ... शब्दों का व्युत्पत्त्यर्थ व्यवहार में नहीं लिया जाता है, किन्तु रूढ़ (संज्ञा) अर्थ ही ग्रहण किया जाता है, जैसे कि:-'पङ्कज' शब्द की व्युत्पत्ति है-'पङ्कात् जातः, 'पकुजः' । अर्थात् जो कीचड़ से पैदा हो । कीचड़ से बहुत सी चीजें पैदा होती है । जैसे कि:-काई (शैवाल) मेढ़क आदि । किन्तु 'पङ्कज' शब्द का रूढ़ अर्थ है-कमल । अतः व्यवहार में पङ्कज' शब्द का अर्थ 'कमल' ही लिया जाता है, काई (शैवाल) मेढ़क आदि नहीं । इसी तरह 'अमर' शब्द है, जिसकी व्युत्पत्ति है:-'न म्रियतेइ तिअमरः' अर्थात् जो मरे नहीं, उसको अमर कहते हैं । यह 'अमर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ है। किन्तु इसका रूढ़ अर्थ है:-देव' या 'अमरचन्द्र' नाम का व्यक्ति । अपनी आयु समाप्त होने पर देव भी मरता है और 'अमरचन्द्र' नाम का व्यक्ति भी मरता है । इस अपेक्षा से इन में ।
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