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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक का प्रतिमा आराधन- ४३३ अट्ठमं मासं अट्ठारसमंअट्ठारसमेणं, नवमं मासं वीसहमंवीसइमेणं, दसमं मासं बावीसइमंबावीसइमेणं, एकारसमं मासं चउवीसहमं-चउवीसहमेणं, बारसमं मासं छवीसइमंव्वीसइमेणं, तेरसमं मासं अट्ठावीसइमंअट्ठावीसइमेणं, चउद्दसमं मासं तीसहमंतीसइमेणं, पण्णरसमं मासं बत्तीसहमंबत्तीसइमेणं, सोलसं मासं चोत्तीसइमंचोत्तीसइमेणं अणिरिखत्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुस्कुडुए सुंराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेणं । तए णं से खंदए अणगारे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं अहासुतं अहाकप्पं जावआराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहुहिं चउत्थ-टु-अट्ठम-दसम-दुवालसेहिं, मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणे विहरह । विशेष शब्दों के अर्थ-अणिक्खितेणं-निरन्तर, ठगनुक्कुए-उत्कटुक आसन से बैठना, सूराभिमूहे-सूर्य के सामने मुंह करके, आयावणभूमिए-आतापन भूमि में, रतिरात को, अवाउडेग-अप्रावृत्त-वस्त्ररहित, अहासुत्तं-सूत्रानुसार, अहाकर्प-कल्पानुसार, विचित्तहि तबोकम्मेहि विविध प्रकार के तप से। भावार्थ-इसके बाद स्कन्दक अनगार भगवान् की आज्ञा लेकर यावत उन्हें वन्दना नमस्कार करके गुणरत्न संवत्सर तप करने लगे। गुणरत्नसंवत्सर तप की विधि इस प्रकार है-पहले महीने में निरन्तर उपवास करना, दिन के समय उत्कटक आसन से बैठ कर सूर्य के सामने मुख करके आतापना भूमि में सूर्य की आतापना लेना और रात्रि के समय वीरासन से बंठ कर अप्रावत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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