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________________ : ४१२ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-बालमरण के भेद ४ तद्भव मरण, ५ गिरि-पतन मरण, ६ तरु-पतन मरण, ७ जल-प्रवेश मरण, ८ ज्वलन प्रवेश मरण, ९ विष भक्षण मरण, १० सत्थोवाडण (शस्त्रावपाटन) मरण, ११ वेहानस मरण, १२ गिद्धपिट्ठ (गृध्रपृष्ठ) मरण । इन बारह प्रकार के मरण से मरता हुआ जीव, नरक के अनन्त भव बढ़ाता है, तियंच, मनुष्य और देव के अनन्त भव बढ़ाता है । वह नरक, तियंच, मनुष्य और देव, इन चार गति रूप अनादि अनन्त संसार रूप कान्तार (वन) में बारम्बार परिभ्रमण . करता है। अर्थात् इन बारह प्रकार के बालमरण द्वारा मरता हुआ जीव, अपने संसार भ्रमण को बढ़ाता है। विवेचन-बालमरण के बारह भेद बतलाये गये हैं । इनका अर्थ इस प्रकार है १ बलन्मरण-तीव्र भूख और प्यास से छटपटाते हुए प्राणी का मरण 'बलन्मरण' कहलाता है । अथवा संयम से भ्रष्ट प्राणी का मरण 'बलन्मरण' कहलाता है। . २ वसट्टमरण (वशार्तमरण)-इन्द्रियों के वशीभूत होकर मरने वाले प्राणी का मरण 'वसट्टमरण' कहलाता है । जैसे दीप की शिखा पर गिर कर प्राण देने वाले पतंगिये का मरण । ३ अंतोसल्लमरण (अन्तःशल्य मरण)-इसके द्रव्य और भाव से दो भेद हैं। शरीर में बाण या तोमर (एक प्रकार का शस्त्र) आदि के घुस जाने से और उसके वापिस न निकलने से जो मरण होता है, वह द्रव्य से 'अन्तःशल्य मरण' है। अतिचारों की शुद्धि किये बिना ही जो मरण होता है वह भाव से 'अन्तःशल्य मरण' है, क्योंकि अतिचार आन्तरिक शल्य है। ४ तद्भवमरण-मनुष्य के शरीर को छोड़ कर फिर मनुष्य होना और तिर्यञ्च के शरीर को छोड़ कर फिर तिर्यञ्च होना 'तद्भवमरण' है । यह मरण मनुष्य और तिर्यञ्चों में ही हो सकता है, किन्तु देव और नैरयिक जीवों में नहीं, क्योंकि मनुष्य मर कर मनुष्य और तिर्यञ्च मर कर तिर्यञ्च हो सकता है, किन्तु देव मर कर फिर दूसरे भव में देव और नैरयिक मर कर फिर दूसरे भव में नैरयिक नहीं हो सकता है। ५ गिरिपडण (गिरिपतन) मरण-पर्वत आदि से . गिर कर मरना 'गिरिपडण मरण' कहलाता है। ६ तरुपडण (तरुपतन) मरण-वृक्ष आदि से गिर कर मरना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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