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________________ ४०२ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-भगवान् की सर्वज्ञता का परिचय दर्शी हैं । उन्होंने तुम्हारे मन में रही हुई गुप्त बात मुझ से कही है । इसलिए हे स्कन्दक ! में तुम्हारे मन की गुप्त बात जानता हूँ। इसके बाद कात्यायनगोत्री स्कन्दक परिव्राजक ने गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा कि-हे गौतम ! तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास चलें, उन्हें वन्दना नमस्कार करें यावत् उनकी पर्युपासना . तब गौतम स्वामी ने कहा कि-हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो, किन्तु इस कार्य में विलम्ब मत करो। - विवेचन-स्कन्दक परिव्राजक को आते हुए देख कर गौतम स्वामी अपने आसन से खड़े हुए और सामने गये । इसका कारण यह है कि यद्यपि उस समय स्कन्दक परिव्राजक असंयत था, तथापि भविष्यत् में वह साधु होने वाला है, इसलिए गौतम स्वामी को उसके प्रति राग भाव उत्पन्न हुआ। अतः वे अपने आसन से खड़े हुए और सामने गये । दूसरी बात यह है कि भगवान् ने स्कन्दक सम्बन्धी जो बात गौतम स्वामी से कही थी उस बात को कहने से भगवान् का ज्ञानातिशय प्रकट होगा और स्कन्दक के मन में भगवान् के प्रति बहुमान प्रकट होगा। इसलिए गौतम स्वामी अपने आसन से खड़े हुए और सामने गये तथा स्कन्दक के आगमन का स्वागत किया। . ज्ञानी अपने ज्ञान बल से और तपस्वी अपने तपोबल से अथवा तपस्वी की देव सेवा करते हैं, अतः देव की सहायता से परोक्ष बात को एवं दूसरे के मन में रही हुई गुप्त बात को जान लेते हैं। इसीलिए स्कन्दक परिव्राजक ने गौतम स्वामी से यह पूछा कि-हे गौतम ! आपके यहाँ कौन ऐसा ज्ञानी या तपस्वी है जिसने मेरे मन की गुप्त बात जानली है ? इसके उत्तर में गौतम स्वामी ने कहा कि-मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं । इसलिए हे स्कन्दक ! उन्होंने तुम्हारे मन की गुप्त. बात को जान ली। तए णं से भगवं गोयमे खंदएणं कचायणस्सगोत्तेणं सद्धि जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव पहारेत्थ गमणाए । ते णं काले णं, तेणं समए णं समणे भगवं महावीरे वियट्टभोई या वि होत्था । तए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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