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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १० ऐपिथिकी और साम्परायिकी क्रिया ३७३ - ३२५ उत्तर-हे गौतम ! अन्यतीथिक ऐसा कहते हैं यावत् उन्होंने जो ऐसा कहा है सो मिण्या कहा है । हे गौतम ! में इस प्रकार कहता हूँ कि एक जीव, एक समय में एक क्रिया करता है। यहां परतीथिकों का तथा स्वसिद्धांत का वक्तव्य कहना चाहिए यावत् ऐर्यापथिको अथवा साम्परायिकी क्रिया करता . विवेचन-गमन और आगमन के मार्ग में होने वाली क्रिया 'ऐर्यापथिकी क्रिया' कहलाती है । यह क्रिया केवल योग निमित्त से होती है । जो क्रिया कषाय से लगती है और जिसमें कषाय कारण हैं, वह "साम्परायिकी क्रिया' कहलाती है । ऐर्यापथिकी क्रिया कषाय के क्षीण होने पर या उपशान्त होने पर ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में लगती है । साम्परायिकी क्रिया से संसार परिभ्रमण करना पड़ता है । ऐपिथिकी क्रिया में सिर्फ योग का निमित्त होता है। साम्परायिकी क्रिया में भी योग का निमित्त है किन्तु उसमें कषाय की प्रधानता है । यह क्रिया दसवें गुणस्थान तक लगती है । संसार परिभ्रमण का कारण कषाय है । ठाणांग सूत्र के दूसरे ठाणे में कहा गया है कि-पच्चीस क्रियाओं में से चौवीस क्रियाएँ साम्परायिकी हैं और एक ऐपिथिकी है। . गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा कि-हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं कि एक जीव, एक समय में दो क्रियाएं करता है-ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी । क्या उनका यह कथन ठीक है ? भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! अन्यतीथिकों का यह कथन मिथ्या है । एक जीव, एक समय में दो क्रियाएं नहीं कर सकता, किन्तु एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है, चाहे ऐर्यापथिकी करे, चाहे साम्परायिकी करे। यहाँ यह आशंका हो सकती है कि-'जो की जाय वह क्रिया कहलाती है। फिर एक साथ दो क्रियाएं क्यों नहीं की जा सकती है ? क्योंकि जिस समय में 'ईर्या' अर्थात् गमन करने की क्रिया की जाती है, उसी समय कषाय भी रहता है और कषाय की क्रिया साम्परायिकी क्रिया कहलाती है। इसलिए ऐर्यापथिकी क्रिया के साथ साम्परायिकी क्रिया भी होनी ही चाहिए । इसी प्रकार जब साम्परायिकी क्रिया होती है तब योग भी रहता है और योग की क्रिया ऐपिथिकी है। ऐसी दशा में साम्परायिकी क्रिया के साथ ऐर्यापषिकी क्रिया भी क्यों नहीं लगती ? . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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