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________________ गावती सूत्र-श. १ उ. १० भाषा भाषा भासा, भासासमयविइक्कंतं च णं भासिया भासा अभासा; सा किं भासओ भासा ? अभासओ भासा ? भासओ णं भासा । णो . खलु सा अभासओ भासा ।" . ३२१-बोलने से पहले की भाषा, अभाषा है, बोलते समय की भाषा भाषा है और बोलने के बाद की भाषा, अभाषा है। ३२२-वह जो पहले की भाषा, अभाषा है, बोलते समय की भाषा; भाषा है, और बोलने के बाद की भाषा, अभाषा है, सो क्या बोलने वाले पुरुष की भाषा है, या अनबोलतें पुरुष की भाषा है ? (उत्तर)-वह बोलने वाले पुरुष की भाषा है, किन्तु अनबोलते पुरुष की.भाषा नहीं है। . विवेचन-अन्यतीर्थी यह भी कहते हैं कि भाषा बोलने से पहले तो भाषा है, लेकिन बोलने के समय भाषा नहीं है, और बोलने के बाद फिर भाषा है । ऐसा मानने वालों की दलील यह है कि अपने मन के भावों को व्यक्त करने के लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है अर्थात् मन के भावों को समझना ही भाषा का उद्देश्य है । भाषा किसी को लक्ष्य करके ही बोली जाती है । अतएव बोलने से पहले भाषा थी, बोलने के बाद भी भाषा रही, परन्तु बोलते समय भाषा, भाषा नहीं है। बोलने से पहले वक्ता के मन में भाव थे और जबतक उसके हृदय में भाव हैं, तभी तक वह भाषा है, किन्तु जब बोलना प्रारम्भ किया, तो वह भाषा नहीं रही, क्योंकि बर्तमान काल अत्यन्त सूक्ष्म है-एक समय मात्र का है । उसमें कोई क्रिया नहीं हो सकती। एक समय में पूरे पद का उच्चारण भी नहीं हो सकता और पद . का उच्चारण हुए बिना कोई अर्थ समझ में नहीं आ सकता। इसलिए बोलते समय निर. र्थक होने के कारण भाषा, भाषा नहीं रही। हां, बोलने के पश्चात् भाषा, भाषा है, क्योंकि उससे श्रोता को अर्थ का बोध होता है । .. भगवान् फरमाते है कि-हे गौतम ! अन्यतीर्थिकों का यह मन्तव्य मिथ्या है, क्योंकि वास्तव में भाषा वही है जो बोली जा रही है । बोलने से पहले भाषा, अभाषा है, क्योंकि वह उस समय तक बोली नहीं गई है और इस कारण उसका अस्तित्व ही नहीं है और बोलने के पश्चात् शब्द और अर्थ का वियोग हो जाता है । इसलिए वह भी भाषा नहीं है केवल बोली जाती हुई भाषा ही भाषा है। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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