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________________ ३२८ भगवती सूत्र - - श. १ उ. ८ वीयं विचार मणूसा जहा ओहिया जीवा । णवरं - सिद्धवज्जा भाणियव्वा । वाण मंतर - जोइस वेमाणिया जहा रहया । सेवं भंते ! सेवं भंते ! चि जाव - विहरइ । ॥ अट्टमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ विशेष शब्दों के अर्थ-सवीरिया-सवीर्य, अवीरिया-अवीर्य, लद्विवीरिएणं-लब्धि वीर्य से, करणवीरिएणं-करण वीर्य से । Jain Education International भावार्थ - २७५ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव, सवीर्य (वीर्य वाले) हैं ? या अवीर्य (वीर्य रहित ) हैं ? २७५ उत्तर - हे गौतम! २७६ प्रश्न - हे भगवन् ! २७६ उत्तर - हे गौतम! जीव दो प्रकार के हैं - संसारसमापन्नक (संसारी ) और असंसारसमापन्नक ( सिद्ध) । इनमें जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं, वे अवीर्य (वीर्य रहित ) हैं । जो जीव संसारसमापनक हैं, वे दो प्रकार के हैं - शैलेशी - प्रतिपन्न और अशैलेशी - प्रतिपन्न । इनमें जो शैलेशी प्रतिपन्न हैं, वे लब्धिवीर्य की अपेक्षा सवीर्य है और करणवीर्य की अपेक्षा अवीर्य हैं । जो अशलेशीप्रतिपन्न हैं, वे लब्धिवीर्य से सवीर्य हैं, किन्तु करणवीर्य से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं । इसलिए हे गौतम! ऐसा कहा गया है कि-जीव सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं । २७७ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नारकी जीव, सवीर्य हैं या अवीर्य हैं ? २७७ उत्तर - हे गौतम! नारकी जीव, लब्धिवीर्य से सवीर्य हैं और करण - वीर्य से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं । २७८ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? २७८ उत्तर - हे गौतम ! जिन नारकियों में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम है, वे नारकी जीव, लब्धिवीर्य और करणवीर्य से भी सवीर्य जीव सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं । इसका क्या कारण है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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