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________________ ३२२ भगवती सूत्र-श. १ उ. ८ मृगघातकादि को लगने वाली क्रिया २७१ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव से पुरिसवेरेणं ___२७१ उत्तर-से गूंणं गोयमा ! कजमाणे कडे, संधिज्जमाणे संधित्ते, णिवत्तिजमाणे निव्वत्तिए, निसरिजमाणे णिसिटे ति वत्तव्य सिया ? "हंता, भगवं ! कन्जमाणे कडे, जाव-णिसिटे त्ति वत्तव्वं सिया" । से तेणटेणं गोयमा ! जे मियं मारेइ, से मियवरेणं पुढे । जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुढे । अंतोछण्डं मासाणं मरह । काइयाए, जाव-पंचहिं किरियाहिं पुढे । बाहिं छण्हं मासाणं मरह, काइयाए, जाव-पारियावणियाए चाहिं किरियाहिं पुढे । विशेष शब्दों के अर्थ-मायतकण्णाययं-कान तक खींच कर, पुवायामणयाएपूर्व के सींचाव से, णिसिठे-फेंकने, संधिग्ममाणे-सन्धान करता हुभा, पिवत्तिन्नमाणेनिर्वतित करता हुआ = तैयार करता मा । निसरिजमाणे-फेंका जाता हमा। भावार्थ-२७० प्रश्न-हे भगवन् ! कोई पुरुष, कच्छ में पावत् किसी मग काप करने के लिए कामतकलचे किये ४ए बाण को प्रवल पूर्वकबीच करपदा हो और सरा कोई पुरुष पीछे से भाकर उसबोहर पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार बारा फोगले।बह पाण पहले केजीचाव से खल कर उस मृग को अंध वाले, तो है भगवन् । क्या यह पुरुष मृग के पर से स्पृष्ण २७. उत्तर- गौतम | जो पुरुष मृग को मारता है वह मृग के वैर से स्पृष्ट है और जो पुरुष, पुरुष को मारता है वह पुरुष के वैर से स्पष्ट है। २७१.प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है कि यावत् वह पुरुष, पुरुष के वैर से स्पृष्ट है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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