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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ८ मृगपातकादि को लगने वाली क्रिया
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२६६ प्रश्न-पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा, जाव-वणविदुग्गंसि वा तणाई ऊसविय, ऊसविय. अगणिकार्य णिसिरह । तावं च.पं.से भंते ! पुरिसे कतिकिरिए ? .. २६६ उत्तर-गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए, सिय पंचकिरिए। ___२६७ प्रश्न-से केणटेणं? ... २६७ उतर-गोयमा ! जे भविए उस्सवणयाए तिहिं । उस्सवगाए वि, णिसिरणयाए वि, णो दहणयाए वहिं । जे भविए उस्सवणपाए वि, णिसिरणयाए वि, दहणयाए वि, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव-पंचहिं फिरियाहिं पुढे । से तेणडेणं गोयमा०। .
विशेष शब्दों के अर्थ-तगाई-तण, मतपिप-कढे करके, महणपाए-जलाये । ... २६६ प्रश्न- भगवन् । कच्छ में पावत् पनषिपुर्ण (भनेक जाति के गोपालपन) में कोई पुरुष पास के तिलक एक करके उनमें भाग ले तो यह पुषव कितनी किमा पाला होता है?
२६ गतर- गौतम ! यह पुरुष कयाचित् तीन सिमा माला, कहाचित् पार किया पाला मीर काचित पाच किया पाला होता है। .... २६७ प्रान-भगवन् । इसका या कारण है।
२६७ उत्तर--हे गौतम ! जबतक वह पुरुष तिनके इकट्ठे करता है, तब तक वह तीन क्रिया वाला होता है। जब वह तिनके इकट्ठे कर लेता है. और उनमें आग डालता है, किन्तु जलाता नहीं है, तब तक वह चार क्रिया
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