SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भनवती सूत्र-श. १ उ. ७ गर्भगत जीव के अंगादि ३०३ वोयसिन्जमाणे, वोयसिन्जमाणे चरमकालसमयंसि वोच्छिण्णे भवइ । विशेष.शब्दों के अर्थ-माइयंगा-माता के अंग, पिइयंगा-पिता के अंग, अव्वावण्णे -अविनाश । .. भावार्थ-२५१ प्रश्न-हे भगवन् ! माता के कितने अंग कहे गये हैं ? २५१ उत्तर-हे गौतम ! माता के तीन अंग कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं-मांस, रक्त और मस्तक का भेजा (भेज्जक)। २५२ प्रश्न-हे भगवन् ! पिता के कितने अंग कहे गये हैं ? २५२ उत्तर-हे गौतम ! पिता के तीन अंग कहे गये है। वे इस प्रकार है-हड्डी, मज्जा और केश, दाढ़ी, रोम तथा नख। २५३ प्रश्न-हे भगवन् ! माता पिता के अंग सन्तान के शरीर में कितने काल तक रहते हैं ? २५३ उत्तर-हे गौतम ! सन्तान का भवधारणीय शरीर जितने समय तक रहता है उतने समय तक वे अंग रहते हैं और जब भवधारणीय शरीर समय समय पर हीन होता हुआ अन्त में नष्ट हो जाता है, तब माता पिता के अंग भी नष्ट हो जाते हैं। विवेचन-जिन अंगों में माता के आर्तव का भाग अधिक होता है, वे माता के अंग कहे जाते हैं और जिन अंगों में पिता के वीर्य का भाग अधिक होता है वे पिता के अंग कहे जाते हैं। माता के तीन अंग हैं-मांस, रक्त और मस्तुलंग। मस्तलंग का अर्थ है-मस्तक का भेजा । कुछ आचार्य 'मस्तुलुंग' का अर्थ 'चर्बी, फेफसा आदि' कहते हैं । पिता के तीन अंग है-हड्डी, हड्डी की मज्जा (हड्डी के बीच का भाग) और केश रोम नख आदि । इनके सिवाय शेष सब अंग माता और पिता दोनों के पुद्गलों से बने हुए हैं । जब तक सन्तान का भवधारणीय शरीर (जो शरीर उस भव में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त रहता है) रहता है. तब तक माता पिता के पुद्गल उस शरीर में कायम रहते हैं। समय समय पर वे पुद्र, गल हीन होते जाते हैं, जब वे समाप्त हो जाते हैं तब सन्तान का वह भवधारणीय शरीर : भी समाप्त हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy