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भगवती सूत्र -शं. १ उ. ७ गर्भ विचार
चिणाइ, तम्हा उवचिणाइ; से तेणटेणं जाव-नो पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए।
विशेष शब्दों के अर्थ-वक्कममाणे-उत्पन्न होता हुआ, माउओयं-माता का ओज= रज, पिउसुक्क-पिता का शुक्र-वीर्य, तदुभयसंसिठं-परस्पर एक दूसरे में मिले हुए, उच्चारे-विष्ठा-मल, पासवणे-मूत्र, खेले-श्लेष्म-कफ, सिंघाणे-नाक का मैल, वंते-वमन, पित्ते-पित्त, अट्ठि-अस्थि-हड्डी, अटिमिज-अस्थिमज्जा, केस-केश, मंसु-श्मश्रू दाढ़ी, रोम-रोम, णहत्ताए-नख रूप से, कावलियं आहारं-कवलाहार, आहच्च-कदाचित्, पुत्तजीव पडिबद्ध-पुत्र के जीव से प्रतिबद्ध, माउजीवफुडा-माता के जीव से स्पृष्ट ।
__ भावार्थ-२४१ प्रश्न-हे भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, क्या इन्द्रिय वाला उत्पन्न होता है, या बिना इन्द्रिय का उत्पन्न होता है ?
२४१ उत्तर-हे गौतम ! इन्द्रिय वाला भी उत्पन्न होता है और बिना इन्द्रिय का भी उत्पन्न होता है। _____२४२ प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से ?
२४२ उत्तर-हे गौतम ! द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा बिना इन्द्रियों का उत्पन्न होता है और भावेन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रियों सहित उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है। .. २४३ प्रश्न-हे भगवन् ! गर्भ में उपजता हुआ जीव क्या, शरीर सहित उत्पन्न होता है, या शरीर रहित उत्पन्न होता है ?
२४३ उत्तर-हे गौतम ! शरीर सहित भी उत्पन्न होता है और शरीर रहित भी उत्पन्न होता है।
२४४ प्रश्न-हे भगवन् ! सो किस कारण से ? ..
२४४ उत्तर-हे गौतम ! औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों की अपेक्षा शरीर रहित उत्पन्न होता है और तंजस कार्मण शरीर की अपेक्षा शरीर सहित उत्पन्न होता है । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा है।
२४५ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव गर्भ में उत्पन्न होते ही सर्व प्रथम क्या आहार करता है ?
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