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________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. ६ सूर्य के उदयास्त दृश्य की दूरी समयंसि जावइयं खेत्तं फुसइ तावइयं 'पुंसमाणे पुट्टे' त्ति वत्तव्वं सिया ? २०० उत्तर - हंता, गोयमा ! सव्वं ति जाव वत्तव्वं सिया । २०१ प्रश्न- तं भंते! किं पुहुं फुसइ अपुढं फुसइ ? २०१ उत्तर - जाव - नियमा छद्दिसिं । विशेष शब्दों के अर्थ-उबासंतराओ - अवकाशान्तर से उदयंते-उदय होता हुआ, चक्खुप्फासं-चक्षुःस्पर्श - नजर आना, आयवेणं- आतप से - धूप से, ओमासेइ - प्रकाशित करता है, उज्जोएइ - उद्योत करता है, तवेह तपता है, पभासेइ - खूब तपाता है, अत्थमंते-अस्त होता हुआ, पुट्ठे-स्पृष्ट, अपुट्ठे-अस्पृष्ट, छद्दिस - छह दिशाएँ, फुसइ - स्पर्श करता है । २५९ भावार्थ - १९७ प्रश्न - हे भगवन् ! जितने अवकाशान्तर से अर्थात् जितनी दूरी से उगता हुआ सूर्य शीघ्र आँखों से देखा जाता है, क्या उतनी ही दूरी से अस्त होता हुआ सूर्य भी शीघ्र दिखाई देता है ? : १९७ उत्तर - हाँ, गौतम ! जितनी दूरी से उगता हुआ सूर्य शीघ्र दिखाई देता है, उतनी ही दूरी से अस्त होता हुआ सूर्य भी शीघ्र आँखों से दिखाई देता है । १९८ प्रश्न - हे भगवन् ! उगता हुआ सूर्य अपने ताप द्वारा जितने क्षेत्र को सब प्रकार चारों ओर से सभी दिशाओं और विदिशाओं में प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और खूब तपाता है । क्या उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हुआ सूर्य भी अपने ताप द्वारा सभी दिशाओं और सभी विदिशाओं को प्रकाशित करता है ? उद्योतित करता है ? तपाता है ? खूब उष्ण करता है ? १९८ उत्तर - हाँ, गौतम ! उगता हुआ सूर्य जितने क्षेत्र को प्रकाशित करता है, उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हुआ सूर्य भी अपने ताप द्वारा प्रकाशित करता है यावत् खूब उष्ण करता है ? १९९ प्रश्न - हे भगवन् ! सूर्य जिस क्षेत्र को प्रकाशित करता हैं, क्या वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट- स्पर्श किया हुआ होता है या अस्पृष्ट होता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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