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________________ भगवतीसूत्र-श. १ वीरस्तुति के देने वाले, धम्मदए-धर्मदाता, धम्मदेसए-धर्मदेशक-धर्मोपदेश के देने वाले, धम्मणायगे -धर्मनायक, धम्मसारही-धर्म सारथि-धर्म रूप रथ के सारथि, धम्मवर चाउरंतचक्कवट्टी -धर्मवर चातुरन्तचक्रवर्ती-धर्म के विषय में उत्तम चातुरन्त चक्रवर्ती के समान, अप्पडिहयवरणाण-दसणधरे-अप्रतिहतवरज्ञानदर्शनधर-अप्रतिहत उत्तम ज्ञान और दर्शन के धारण करने वाले, वियदृछउमे-छद्मस्थपने से निवृत्त, जिणे-जिन-रागद्वेष के जीतने वाले, जाणए -ज्ञायक-सकल तत्त्वों के जानने वाले, बुद्ध-बुद्ध, बोहए-बोधक-तत्त्वों का बोध कराने वाले; मुत्ते-मुक्त-बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थि से मुक्त, मोयए-मोचक-ग्रन्थि से मुक्त कराने वाले, सव्वण्णू-सर्वज्ञ, सव्वदरिसी-सर्वदर्शी, इन गुगों से युक्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी, सिवं-शिव अयलं-अचल, अरुंअं-अरुज रोग-रहित, अगंतं-अनन्त अक्खयं-अक्षय अव्वाबाहं -अव्याबाध-बाधा-पीडा रहित, अप्पुणरावित्तियं-पुनरावृत्ति रहित, सिद्धिगइनामधेयंसिद्धिगति नामक ठाणं-स्थान को संपाविउकामे-प्राप्त करने की इच्छा वाले, विचरते थे। जाव समोसरणं-यावत् समवसरण तक का वर्णन जान लेना चाहिए । परिसा-परिषद् णिग्गया-वन्दन और धर्मश्रवण के लिए निकली। धम्मो कहिओ-भगवान् ने धर्म कहा। . परिसा पडिगया-परिषद् वापिस चली गई। ___भावार्थ-उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे । वे भगवान् कैसे थे ? इसके लिए कहा है-वे आदिकर, तीर्थङ्कर, स्वयंसंबद्ध, पुरुषोत्तम पुरुषसिंह, पुरुषवर पुण्डरीक, पुरुषवर गन्धहस्ती, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोकप्रदीप, लोकप्रदयोतकर, अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाता, बोधिदाता, धर्मदाता, धर्मोपदेशक, धर्मनायक, धर्मसारथि धर्मवर-चातुरन्त-चक्रवर्ती, अप्रतिहत ज्ञान दर्शन के धारक,छमस्थता से निवृत्त,जिन, ज्ञायक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी थे। वे शिव, अचल, रोग रहित, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध, पुनरागमन रहित, सिद्धि गति को प्राप्त करने की इच्छा वाले थे। वे राजगृह नगर के गुणशिलक उद्यान में पधारे। नगर निवासी जनसमुदाय भगवान् को वन्दना नमस्कार करने के लिए और धर्मश्रवण के लिए निकला। भगवान् ने धर्म कथा कही । धर्मश्रवण कर वह जनसमुदाय वापिस चला गया। ९. विवेचन-भगवान् महावीर स्वामी के लिए जो विशेषण दिये गये हैं उनमें सर्व प्रथम श्रमण' विशेषण दिया गया है । 'श्रमु तपसि खेदे च' इस तप और खेद अर्थ वाली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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