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भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ नारकों के शरीर संहननादि
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१७९ उत्तर-गोयमा ! सत्तावीसं भंगा।
विशेष शब्दों के अर्थ-सरीरया-शरीर, वेउविए-वैक्रिय, तेयए-तेजस्, कम्मएकार्मण, नेवट्ठी-नवास्थि हड्डी नहीं, च्छिरा-शिरा-नश, हारूणि-स्नायु, अणिट्ठा-अनिष्ट, अकंता-अकान्त, अप्पिया-अप्रिय, असुहा-अशुभ, अमणुण्णा-अमनोज्ञ, अमणामा-अमनोहर।
भावार्थ-१७४ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में के एक एक तरकावास में बसने वाले नारको जीवों के कितने शरीर हैं ?
१७४ उत्तर-हे गौतम ! उनके तीन शरीर कहे गये हैं। वे इस प्रकार है-वैक्रिय, तैजस और कार्मण ।
१७५ प्रश्न-इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में के प्रत्येक नरकावास में बसने वाले वैक्रिय शरीर वाले नारको क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? या लोभोपयुक्त हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! सत्ताईस भंग कहना चाहिए। और इसी प्रकार शेष दोनों शरीरों (तेजस् और कार्मण) सहित तीनों के सम्बन्ध में भी यही बात कहना चाहिए।
१७६ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में के प्रत्येक नरकावास में बसने वाले नैरयिकों के शरीरों का कौनसा संहनन है ? . १७६ उत्तर-हे गौतम ! उनका शरीर संहनन रहित है अर्थात् उनमें छह संहननों में का संहनन नहीं होता । उनके शरीर में हड्डी, शिरा (नश) और स्नायु नहीं होती। जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोहर हैं, वे पुद्गल नारकियों के शरीर संघात रूप में परिणत होते हैं।
१७७ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में के प्रत्येक नरकावास में रहने वाले और छह संहननों में से जिनके एक भी संहनन नहीं है, वे नरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं ? मानोपयुक्त हैं ? मायोपयुक्त हैं ? या लोभोपयुक्त हैं ?
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