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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ नारकों के शरीर २३७ होते हैं और तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अवगाहना वाले होते हैं । अतः अवगाहना स्थान असंख्यात हैं। . ___फिर गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले जीव क्या क्रोधी हैं ? मानी हैं ? मायी हैं ? या लोभी हैं ? __भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! यहाँ भी अस्सी भंग जानने चाहिए । एक प्रदेशाधिक से लेकर संख्यात प्रदेशाधिक तक इसी तरह जानना चाहिए । जघन्य अवगाहना से असंख्य प्रदेश अधिक तथा उत्कृष्ट अवगाहना वालों के सत्ताईस भंग होते हैं। ____ यहाँ यह आशंका होती है कि जघन्य स्थिति में सत्ताईस भंग कहे हैं, फिर यहाँ जघन्य अवगाहना में अस्सी भंग कहने का क्या कारण है ? इस शंका का समाधान यह है कि जघन्य स्थिति वाले नैरयिक जब तक जघन्य अवगाहना वाले रहते हैं, तब तक उनकी अवगाहना के अस्सी भंग ही होते हैं । जघन्य स्थिति वाले जिन नैरयिकों के सत्ताईस भंग कहे हैं वे जघन्य अवगाहना को उल्लघन कर चुके हैं । उनकी अवगाहना जघन्य नहीं होती । इसलिए सत्ताईस ही भंग कहे गये हैं। ___ जघन्य अवगाहना से लेकर संख्यात प्रदेश की अधिक अवगाहना वाले जीव नरक में निरन्तर नहीं मिलते हैं, इसलिए उनमें अस्सी भंग कहे गये हैं और जघन्य अवगाहना से असंख्यात प्रदेश अधिक की. अवगाहना वाले जीव, नरक में अधिक ही पाये जाते हैं, इसलिए उनमें सत्ताईस भंग होते हैं । नारकों के शरीर १७४ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए जाव-एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं कह सरीरया पण्णत्ता ? - १७४ उत्तर-गोयमा ! तिण्णि सरीरया पण्णत्ता । तं जहाःबेउन्विए, तेयए, कम्मए । १७५ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! जाव-वेउब्वियसरीरे वट्टमाणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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