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________________ भगवती सूत्र-शतक ९ उद्देशक १ प्रथम उद्देशक - तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णाम णयरे होत्था, वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए गुणसिलए णामं चेहए होत्था । सेणिए राया, चिल्लणा देवी ॥४॥ शब्दार्थ-तेणं कालेणं-उस काल तेणं समएणं-उस समय में रायगिहे णाम-राजगृह नाम का, जयरे-नगर होत्या-था। वण्णओ-उसका वर्णन कर देना चाहिए। तस्स + उस रायगिहस्स गयरस्स-राजगृह नगर के बहिया-बाहर, उत्तरपुरथिमे दिसीमाए-उत्तर पूर्व . के दिशा भाग में अर्थात् ईशान कोण में गुणसिलए-गुणशिलक णाम-नाम का चेइए-चैत्यव्यन्तरायतन, होत्या-था। सेणिए राया-श्रेणिक राजा था। चिल्लणा देवी-चेलना नाम की रानी थी। भावार्थ-उस काल अर्थात् इस अवपिणी काल के चौथे आरे में, उस समय अर्थात् जिस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विचरते थे उस । समय में राजगृह नाम का एक नगर था। वह नगर • धन धान्यादि समृद्धि से समृद्ध था। उसके ईशान कोण में 'गुणशिलक' नामक चैत्य था अर्थात् व्यन्तर जाति के देव का स्थान था। राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था, उसकी रानी का नाम चेलना था। शंका-राजगृह नगर तो अभी भी विदयमान है, फिर उसके लिए 'था' ऐसा भूतकालिक प्रयोग क्यों किया ? के समाधान-राजगृह नगर का वर्णन करने वाले ग्रन्थ में जिस विभूति एवं समृद्धि का वर्णन किया गया है, उन विभूतियों एवं समृद्धियों से युक्त तो वह उसी समय था, परंतु +'ण' यह अव्यय है, वाक्यालङ्कार में आता है । 'ण' का स्वतन्त्र अर्थ कुछ नहीं है, केवल बाक्य की शोभा बढ़ाने के लिए प्रयुक्त होता है । - उवगई सूत्र में चम्पा नगरी का जैसा वर्णन किया गया है वैसा ही वर्णन 'राजगृह' नगर का बानना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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