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भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ अपक्रमण
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जिसके फैलने पर अन्धकार बना रहे, उसे सूर्य का प्रकाश कैसे कहा जा सकता है ? इसी प्रकार ज्ञान के होने पर राग द्वेष का नाश होना चाहिए । यदि राग द्वेष का नाश न हो, तो उसे ज्ञान ही नहीं कहा जा सकता.। तात्पर्य यह है कि जो सर्व विरत हो, उसे 'पण्डित' कहते हैं। पण्डित जीव का वीर्य ‘पण्डित वीर्य' कहलाता हैं।
___ बाल पण्डित-जिन जिन त्याज्य कामों (पापों) को त्यागा नहीं है, उतने अंश में 'बालपन' है और जितने जितने त्याज्य कामों को त्यागा है, वह 'पण्डितपन' है अर्थात् देशविरति वाले श्रावक को 'बालपण्डित' कहते हैं । बालपण्डित जीव का वीर्य बालपण्डित वीर्य' कहलाता है।.
जब मिथ्यात्व का उदय होता है, तब जीव मिथ्यादृष्टि गिना जाता है । जब जीव मिथ्यादृष्टि वाला होता है तब वह 'बालवीर्य' वाला होता है। बालवीर्य से ही जीव उपस्थान-परलोक की क्रिया करता है । बालपण्डितवीर्य और पण्डित वीर्य से जीव . उपस्थान नहीं करता है।'
अपक्रमण--पतन
१५० प्रश्न-जीवे णं भंते ! मोहणिजेणे कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं अवकमेजा ? -
१५० उत्तर-हंता, अवकमेजा। - १५१ प्रश्न-से भंते ! जाव-बालपंडियवीरियत्ताए अवकमेजा ? ___ १५१ उत्तर-गोयमा ! बालवीरियत्ताए अवकमेजा, नो पंडियवीरियत्ताए अवकमेजा, सिय बालपंडियवीरियत्ताए अवक्कमेजा। जहा उदिण्णेणं दो आलावगा तहा उवसंतेण वि दो आलावगा भाणियव्वा; नवरं-उवटाएजा पंडियवीरियताए, अवकमेजा, बाल
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