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________________ । भगवती सूत्र-नमस्कार मंत्र आचार्य-सूत्र और अर्थ के ज्ञाता, गच्छ के नायक, गच्छ के लिए आधारभूत, उत्तम लक्षणों वाले, गण के ताप से विमुक्त अर्थात् गण की सारण वारण और धारण रूप व्यवस्था की चिन्ता से न घबराने वाले, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप आचार और वीर्याचार, इन पांच प्रकार के आचार का दृढ़ता से पालन करने वाले और पालन कराने वाले आचार्य होते हैं । ऐसे आचार्य महाराज को नमस्कार हो। - उपाध्याय -जिनके समीप रह कर जैनागमों का अध्ययन किया जाय, जिनकी सहायता से जैनागमों का स्मरण किया जाय, जिनकी सेवा में रहने से श्रुतज्ञान का लाभ हो,. सद्गुरु परम्परा से प्राप्त जिन वचनों का अध्ययन करवा कर जो भव्य जीवों को विनय में प्रवृत्ति कराते हैं, वे उपाध्याय कहलाते हैं । ऐसे उपाध्यायजी महाराज को नमस्कार हो। साधु+-ज्ञान, दर्शन और चारित्र के द्वारा मोक्ष को साधने वाले तथा सब प्राणियों में समभाव रखने वाले साधु कहलाते हैं। उन सब साधुजी महाराज को नमस्कार हो । यहाँ 'सर्व' शब्द से सामायिक आदि पाँच चारित्रों में से किसी भी चारित्र का पालन करने वाले, भरतादि किसी भी क्षेत्र में विदयमान, तिर्छा लोकादि किसी भी लोक में विदधमान और स्त्रीलिंगादि तथा स्वलिंगादि किसी भी लिंग में विदयमान, भाव चारित्र सम्पन्न, छठे गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थानवर्ती सभी साधु साध्वियों का ग्रहण किया गया है, जो जिनाज्ञा अनुसार ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने वाले हैं। . णमो लोए सव्वसाहूणे-में जो 'सव्व-सर्व' शब्द ग्रहण किया गया है वह पहले के चार पदों के साथ अर्थात् अरिहंत, सिद्ध, आचार्य और उपाध्याय, इन चारों पदों के साथ भी लगा लेना चाहिए। सुतत्यविऊ लक्खगजुत्तो, गच्छस्स मेढिभूओ य। गणतत्तिविप्पमुक्को, अत्यं वाएइ आयरिओ॥. पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पमासंता। आयारं दंसंता, आयरिया तेण बुच्चंति ॥ •बारसंगो जिणक्खाओ, समाओ कहिओ बूहे। तं उवइसंति जम्हा, उबजमाया तेण.वुच्चंति ।। + निब्वाणसाहए जोए, जम्हा साहेति साहुणो। समा य सम्बस्नु, सम्हा ते भाव साहुमो॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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