SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ कांक्षा-मोहनीय की उदीरणा १८७ चाहिए था ? . समाधान-गर्दा और संवर ये दोनों उदीरणा के साधन हैं। यह बात प्रकट करने के लिए ही इन दोनों पदों को उदीरणा के साथ रखा गया है। पहले प्रश्न का जो उत्तर दिया गया है उससे भी यह बात स्पष्ट हो जाती है। __ गौतम स्वामी ने जो उदीरणा का प्रश्न किया है उसका उत्तर यह दिया गया किआत्मा उदीर्ण (उदय में आया हुआ) कर्म की उदीरणा नहीं करता, क्योंकि वे तो स्वयं ही उदय में आये हुए हैं । जो कर्म उदय में आये हुए हैं यदि उनकी भी उदीरणा की जायगी, तो फिर उदीरणा का अन्त नहीं आवेगा । इस प्रकार अव्यवस्था हो जायगी । इसी प्रकार अनुदीर्ण कर्म की भी उदीरणा नहीं होती है अर्थात् जिन कर्मों की उदीरणा भविष्य में बहुत देर में होने वाली है, या जिन कर्मों की उदीरणा भविष्य में नहीं होगी, ऐसे उदीरणा के अयोग्य कर्मों की उदीरणा नहीं होती है । जो कर्म स्वरूप से अनुदीर्ण हैं, लेकिन उदीरणा के योग्य हैं, वे उदीरणाभविक (उदीरणा भाव्य) कहलाते हैं। ऐसे ही कर्मों की उदीरणा होती है अर्थात् पूर्वोक्त चार अंगों में से तीसरे भंग के कर्मों की उदीरणा होती है । जो कर्म उदयानन्तर पश्चात्कृत हैं, उनकी भी उदीरणा नहीं होती, क्योंकि वे कर्म उदय में आ चुके हैं, इसलिए अतीत रूप हैं और अतीत वस्तु असत्रूप होती है । अतएव ऐसे कर्म की उदीरणा नहीं होती है । कर्म की उदीरणा में काल, स्वभाव, नियति (होनहार) आदि भी कारण हैं, किन्तु प्रधानता आत्मा के वीर्य की ही है । इसलिए आत्मा अपने आप उदीरणा करता है और वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम से करता है । ये सब आत्मा में विद्यमान हैं। यहां तक कांक्षामोहनीय कर्म की उदीरणा के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर हुएं । अब कांक्षामोहनीय कर्म के उपशम के विषय में गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि-हे भगवन् ! . क्या आत्मा अपने आप ही कर्म को उपशान्त करता है, गहता है और संवरता है। भगवान् ने फरमाया-हां, गौतम ! यह सब कथन उदीरणा के सम्बन्ध में दिये गये उत्तर की ही तरह समझना चाहिए । विशेष यह है कि जो कर्म अनुदीर्ण हैं अर्थात् उदय में नहीं आये है, उन्हीं का उपशम होता है, उदय में आये हुए कर्म का उपशम नहीं होता। तात्पर्य यह . है कि पूर्वोक्त चार भंगों में से यहां दूसरा भंग कहना चाहिए। ____ उपशम केवल मोहनीय कर्म का ही होता है । जैसा कि कहा है मोहस्सेबोबसमो खओक्समो पउहं पाई। . उदयक्लयपरिणामा, अट्ठम्ह वि होति कम्मागं ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy