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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ कांक्षामोहनीय .
स्वात्मा को सुख प्रिय है, वैसा परात्मा को भी सुख प्रिय है ? भगवान् ने फरमाया किहाँ, गौतम ! जैसे स्वात्मा को सुख प्रिय है, वैसा परात्मा को भी सुख प्रिय है।
अथवा-'एत्थ' और 'इह' ये दोनों शब्द 'एतद्' शब्द से बने हैं। ये दोनों समानार्थक हैं । इन दोनों का अर्थ है-प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली वस्तु । अर्थात् आपकी सेवा में रहे हुए ये श्रमण और गृहस्थ आदि दोनों ही प्रत्यक्ष-सामने हैं ।
कांक्षामोहनीय के बन्धादि ...
१२६ प्रश्न-जीवा णं भंते ! कंखामोहणिजं कम्मं बंधति ? .१२६ उत्तर-हंता, गोयमा ! बंधति । १२७ प्रश्न-कह णं भंते ! जीवा कंखामोहणिजं कम्मं बंधति ? १२७ उत्तर-गोयमा ! पमादपञ्चया, जोगनिमित्तं च । १२८ प्रश्न-से णं भंते ! पमाए किंपवहे ? १२८ उत्तर-गोयमा ! जोगप्पवहे । . १२९ प्रश्न-से णं भंते ! जोए किंपवहे ? १२९ उत्तर-गोयमा ! वीरियप्पवहे । १३० प्रश्न-से णं भंते ! वीरिए किंपवहे ? १३० उत्तर-गोयमा ! सरीरप्पवहे । १३१ प्रश्न-से णं भंते ! सरीरे किंपवहे ?
१३१ उत्तर-गोयमा ! जीवप्पवहे । एवं सति अस्थि उटाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरिकमेइ वा।
विशेष शब्दों के अर्थ-बंधंति-बांधते हैं, पमादपच्चया-प्रमाद के कारण, जोग
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