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________________ भगवती सूत्र--श. ५ उ २ संसार संस्थानकाल १४७ १०६ प्रश्न-एयस्स णं भंते ! नेरइयसंसारसंचिट्ठणकालस्स जावदेवसंसारसंचिट्ठणकालम्स जाव-विसेसाहिए वा ? १०६ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवे मणुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, नेरझ्यसंसारसंचिट्ठणकाले असंखेजगुणे, देवसंसारसंचिट्ठणकाले असंखेजगुणे, तिरिक्खजोणिएसंसारसंचिट्ठणकाले अणंतगुणे। विशेष शब्दों के अर्थ-तीतद्धाए - अतीत काल में, आविट्ठस्स-आदिष्ट-नारकादि विशेषण विशिष्ट, संसारसंचिट्ठणकाले-संसार संस्थान काल, सुण्णकाले-शून्यकाल, असुण्णकाले-अशून्यकाल, मिस्सकाले-मिश्रकाल, कयरे-कौन, कयरेहितो-किनसे, अप्पे-अल्प, तुल्ले-तुल्य, विसेसाहिए-विशेषाधिक, सव्वत्थोवे-सब से थोड़े। : भावार्थ-९९ प्रश्न-हे भगवन् ! अतीत काल में आदिष्ट-नारक आदि . विशेषण विशिष्ट जीवों का संसार संस्थान काल कितने प्रकार का कहा गया है ? . . ९९ उत्तर--हे गौतम! संसार संस्थान काल चार प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है-नरयिक संसार संस्थान काल, तिर्यञ्च संसार संस्थान काल, मनुष्य संसार संस्थान काल और देव संसार संस्थान काल। ... १०० प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक संसार संस्थान काल कितने प्रकार का कहा गया है ? १०० उत्सर-हे गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है-शून्यकाल, अशून्यकाल, और मिश्रकाल। १०१ प्रश्न-हे भगवन् ! तिर्यञ्च संसार संस्थान काल कितने प्रकार का कहा गया है ? - १०१ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है-अशून्यकाल और मिश्रकाल । १०२-मनुष्यों और देवों के संसार संस्थान काल का कयन नारकियों के समान समझना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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