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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. २ नैरयिकों के समवेदना आदि १२१ कर्मी हैं । जो जीव पीछे उत्पन्न हुए हैं उन्हें आयु और सात कर्म बहुत भोगने बाकी हैं, इस लिए वे महाकर्मो (बहुत कर्म वाले) हैं, क्योंकि इनका आयुष्य और सात कर्म बहुत थोड़े भोग गये हैं। भगवान् का यह कथन समान स्थिति वाले नारकियों की अपेक्षा समझना चाहिए। विषम स्थिति वालों की अपेक्षा नहीं । जैसे कि मान लीजिये-एक जीव दस हजार वर्ष की स्थिति बांधकर हाल ही में रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न हुआ है । और दूसरा रत्नप्रभा पृथ्वी की उत्कृष्ट स्थिति एक सागर की बाँधकर उससे बहुत पहले उत्पन्न हो चुका है और उसने बहुत-सी स्थिति भोग ली है, सिर्फ एक पल्योपम की स्थिति भोगनी बाकी रही हैं फिर भी वह पश्चादुत्पन्न दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिक की अपेक्षा महाकर्मी है, और वह पश्चादुत्पन्न दस हजार वर्ष की स्थिति वाला नैरयिक उस पूर्वोत्पन्न की अपेक्षा अल्पकर्मी है। यदि दो जीव समान स्थिति बांध कर नरक में गये हैं, तो उनमें से जो पहले उत्पन्न हुआ है वह अल्पकर्मी है और जो पीछे उत्पन्न हुआ है वह बहुकर्मी है, क्योंकि पहले उत्पन्न हुए नरयिक ने उसकी अपेक्षा अधिक कर्म भोग लिए हैं और उत्पन्न होने वाले ने उसकी अपेक्षा कम कर्म भोगे हैं। इस तरह यह सूत्र समान स्थिति वाले नैरयिकों की अपेक्षा से है-ऐसा जानना चाहिए। - यही बात वर्ण के विषय में है, समान स्थिति वाले नैरयिकों में से जो पहले उत्पन्न हुआ है, वह अल्पकर्मी होने से उसका वर्ण विशुद्ध होता है और जो पीछे उत्पन्न हुआ है उसका वर्ण उसकी अपेक्षा अविशुद्ध होता है, क्योंकि वह उसकी अपेक्षा महाकर्मी है। ... लेश्या के सम्बन्ध में भी यही बात है । लेश्या' शब्द से यहाँ 'भाव लेश्या' को ही ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि द्रव्य लेश्या तो वर्ण रूप है, वह 'वर्ण' में आ चुकी है। इस प्रकार समान स्थिति बांधकर जो जीव नरक में पहले उत्पन्न हो चुका है, उसकी भाव लेश्यापश्चात् उत्पन्न होने वाले नैरयिक की अपेक्षा विशुद्ध है और पश्चात् उत्पन्न होने वाले की भाव लेश्या पूर्वोत्पन्न की अपेक्षा अविशुद्ध है। नरयिकों के समवेदना आदि ७७ प्रश्न-नेरइया णं भंते ! सव्वे समवेयणा ? ७७ उत्तर-गोयमा ! णे इणढे समढे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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