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________________ ११८ भगवती सूत्र - श. १ उ. २ नैरयिकों के समकर्म आदि प्रश्नोत्तर वह छोटे शरीर वाले नारकियों की अपेक्षा कही गई है। महाशरीर वाले नारकियों की अपेक्षा अल्प शरीर वाले नारकी बहुत अन्तर से आहार लेते हैं और बहुत अन्तर से श्वासो - च्छ्वास लेते हैं । अथवा शरीर अपर्याप्त अवस्था में अर्थात् जहाँ तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो वहां तक नारकी जीवों का शरीर बहुत छोटा होने से वे लोमाहार ( रोमाहार ) नहीं कर सकते हैं और शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाने पर वे लोमाहार करते हैं, इस अपेक्षा से यह कहा गया है कि- नारकी जीव कदाचित् आहार करते हैं और कदाचित् आहार नहीं करते हैं । इसी तरह जब तक वे श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति से अपर्याप्त रहते हैं तबतक श्वासोच्छ्वास नहीं लेते और श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति पूर्ण करने पर श्वासोच्छ्वास लेते हैं, इस अपेक्षा से यह कहा गया है कि- 'नारकी जीव कदाचित् श्वासोच्छ्वास लेते हैं और कद्राचित् श्वासोच्छ्वास नहीं लेते हैं' । इसलिए पहले उद्देशक में कही हुई बात और यहाँ कही हुई बात में परस्पर किसी प्रकार का विरोध नहीं है । उपर्युक्त सारे कथन का आशय यह है कि सब नारकी जीव न तो समान आहार करते हैं, न समान रूप से परिणमाते हैं, न समान शरीर वाले हैं और न समान रूप से श्वासोच्छ्वास लेते हैं । और सभी विषम शरीरी आदि हों यह बात भी नहीं है । नैरयिकों के समकर्म आदि प्रश्नोत्तर ७१ प्रश्न - नेरइया णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? ७१ उत्तर - गोयमा ! नो इणट्टे समड़े | ७२ प्रश्न - से केणट्टेणं ? ७२ उत्तर - गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा : - पुव्वोववन्नगा य, पच्छोववन्नगा य । तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा, से तेणट्टेणं गोयमा !....। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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