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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ संवृत अनगार
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संसार का दूसरा विशेषण है-'अणवयग्गं' यानी अनन्त अर्थात् जिसका परिमाण ज्ञात न हो, जिसके अन्त का पता न चले, उसे अनन्त कहते हैं ।
तीसरा विशेषण है-'दीहमद्धं'। अध्व का अर्थ है-मार्ग और 'दीह' का अर्थ है दीर्घ (लम्बा) । जिसका मार्ग लम्बा हो, वह 'दीहमद्धं' कहलाता है अथवा दीर्घकाल वाले को भी 'दीहमद्धं' कहते हैं।
चौथा विशेषण है—'चाउरंत' । चाउरंत का अर्थ है-चार विभाग वाला । नरक गति, तिर्यञ्च गति, मनुष्य गति और देव गति । इस प्रकार जिसमें चार विभाग हैं, वह चाउरंत - चातुरन्त कहलाता है । . . तात्पर्य यह है कि असंवृत अनगार ऐसे संसार रूपी वन में भ्रमण करता है जिसमें दुःख ही दुःख है, जिसकी समाप्ति का पता नहीं, जिसके अन्त का कोई परिमाण नहीं जिसका मार्ग लम्बा है और जिसके चारगति रूप चार विभाग हैं । अतः असंवृतपन त्याज्य है।
संवृत अनगार
___५८ प्रश्न-संवुडे णं भंते ! अणगारे सिन्झइ जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ? ... ५८ उत्तर-हंता, सिज्झइ जाव अंतं करेइ ।
५९ प्रश्न-से केणटेणं भंते ?
५९ उत्तर-गोयमा ! संवुडे अणगारे आउयवजाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धणियबंधणबद्धाओ सिडिलबंधणबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठियाओ हस्सकालट्ठियाओ पकरेइ, तिव्वाणुभावाओ मंदाणुभावओ पकरेइ, बहुप्पएसगाओ अप्पपएसगाओ पकरेइ, आउयं
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