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________________ चार निक्षेप में-ढूंढनीजीका ज्ञान. (५७) प्रथम इस ढूंढनीजीने, द्रव्यार्थिक चार नयोंका विषय रूप पदार्थ को निरर्थक ठहराके, द्रव्यार्थिक चार नयका विषयरूप, तीन निक्षोपोंको भी, निरर्थक लिखती रही, परंतु इतना विचार न किया कि, साधु, साध्वीका वेश, आहार, विहारादिक जो जो सिद्धांत में, विचार दिखाया है सो . सर्व, बहु लतासें द्रव्यार्थिक चार नयोंका ही विचारसें, लिखा हुवा है. || और श्रावक, श्राविकाका सामायिक, पोषध, प्रतिक्रमण, अर्थात् सम्यक्त्व मूल बाराव्रतादिकके जो जो आचार विचारका वर्णन हैं, सो भी सर्व प्रायें द्रव्या थिंक चारनयों का विषय रूपसे ही कहे गये है. इस वास्ते, द्रव्याथिंक चारनयोंका विषयको निरर्थकपणा ठहरानेसे, सर्व जैन मार्गकी क्रिया बिगरेका ही, निरर्थकपणा, ठहरता है, और जैनमार्गकी क्रियाका निरर्थकपणा ठहरनेसे, जैनमार्गका लोप करनेका महा प्रायश्चित्त होता है, इस वास्ते, ढूंढनीजीने, लेख लिखती वखते पुतपणेका एक भी विचार नहीं किया है ? केवल थोथा पोथाको ही लिख दिखाया है | || अगर जो ढूंढनीजीके मनमें, यह विचार रह जाता होगा कि, मैंनें आठ विकल्प किये है, उसमें कोई भी प्रकारका बाधकपणा नही आता है, मात्र संवेगालोको ही, जूठा आक्षेप करके, हमारा लेखको निरर्थकपणा ठहरा देते है. इस संकाको दूर कर नेके लिये, समजूति करके दिखाते है. ।। " 1 || ढूंढनीजका कहना यह है कि नाम १ । स्थापना २ । द्रव्य ३ | और भाव ४ | यह चार विकल्प है सो, जो जो मूलकी वस्तु होती है, उसमें पाया जाता है. "जैसे कि" इंद्र नाम है सो इंद्रमें, । और मिशरी नाम है सो साक्षात् रूपकी मिशरी 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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